चीन की अर्थिक विकास दर गिरती जा रही है, लेकिन उसकी मुद्रा लगातार मजबूत बनी हुई है। ये बात वित्तीय बाजार में कयास और जिज्ञासा का विषय बन गई है। 2021 में अब तक चीन की मुद्रा युवान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आठ फीसदी मजबूत हो चुकी है।

Dollar Vs Rupee : मोदी राज में पहले से ज्यादा खस्ताहाल, 8 साल में रिकॉर्ड 40.90% गिरा रुपया

Dollar Vs Rupee : मोदी राज में पहले से ज्यादा खस्ताहाल, 8 साल में रिकॉर्ड 40.90% गिरा रुपया

Dollar Vs Rupee : केंद्रीय सत्ता में चाहे कांग्रेस ( Congress ) की सरकार रही या अब भाजपा ( BJP ) की सरकार है, डॉलर ( Dollar ) की तुलना में रुपए ( rupee ) का हाल हमेशा बुरा ही रहा। मोदी राज में तो डॉलर की तुलना में रुपए में गिरावट देखकर ऐसा लगता है कि जैसे कि सरकार को इसकी चिंता ही न हो। मोदी सरकार ( Modi government ) के पिछले आठ साल से ज्यादा समय में डॉलर की तुलना में रुपए का मूल्य 40.90 फीसदी तक गिर चुका है। यह एक ऐसा रिकार्ड है जो अर्थव्यवस्था ( Indian Economy ) की चिंता को बढ़ाने वाला है। साल 2014 में जब मोदी पीएम बने थे तो एक डॉलर की कीमत 58.40 रुपए हुआ करती थी।

वर्तमान में रुपए की कीमत डॉलर ( Dollar ) की तुलना में 82.29 रुपए ( Rupee ) है। यानि आठ सालों में रुपए 23.89 रुपए गिरा है। यूपीए सरकार ( UPA government ) की तुलना में रुपए पिछले आठ साल में करीब 41 फीसदी गिर चुका है। इसके बावजूद देश के वित्त मंत्र निर्मला सीतारमण ने हाल ही में दावा किया था कि रुपया कमजोर नहीं हुआ, बल्कि डॉलर मजबूत हुआ है। वित्त मंत्री के इस बयान को रुपए ( rupee ) के हालत को देखते हुए एक मजाक ही कहा जा सकता है।

30 अक्टूबर 2022 को डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होते-होते 80.29 रुपए तक पहुंच गया है। 8 साल पहले यानि 2014 में यूपीए को हराकर मोदी देश के पीएम बने थे। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की शपथ से पहले रुपया थोड़ा मजबूत होकर 58.40 रुपए के लेवल तक पहुंचा था। जबकि 30 अक्टूबर 2022 को रुपया गिरते-गिरते 80.29 रुपए तक पहुंच गया है।

23.89 रुपए गिरा भारतीय करेंसी का भाव

26 मई 2014 को रुपए की कीमत 58.40 रुपए हुआ करती थी। 31 दिसंबर 2014 तक रुपया गिरते-गिरते डॉलर की तुलना में 63.33 रुपए हो गया। 31 दिसंबर 2015 तक रुपया 66.33 रुपए के स्तर पर पहुंच गया। दिसंबर 2016 तक रुपए फिर गिरकर 67.95 रुपये पर पहुंच गया। दिसंबर 2017 तक रुपया आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा मजबूत हुआ और 63.93 रुपए का स्तर छुआ, लेकिन दिसंबर 2018 तक फिर से रुपए में गिरावट आई और यह 69.79 रुपए के स्तर पर पहुंच गया। इसके बाद दिसंबर 2019 तक रुपया 71.27 रुपए हुआ जो दिसंबर 2020 तक गिरकर 73.05 रुपए पर पहुंच गया। दिसंबर 2021 तक रुपए की कीमत 74.30 रुपए हो गई, जो आज यानि 30 अक्टूबर की डेट में 82.29 रुपए पर पहुंच गया है।

कुछ दिनों पहले रुपए का भाव गिरकर 83 रुपए के पार चला गया थां। उससे पहले 10 सप्ताह तक लगातार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता रहा। अब जाकर निवेश की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में कुछ इजाफा हुआ है। इससे पहले कई हफ्तों तक चल रही गिरावट की वजह से डॉलर का भंडार 600 अरब डॉलर से नीचे पहुंच गया था।

वित्त मंत्री का बयान घटिया मजाक

डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में लगातार गिरावट को लेकर हाल ही आईएमएफ की बैठ में जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि रुपया गिर नहीं रहा, बल्कि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है। डॉलर के आगे अन्य सभी देशों की करंसी की हालत एक जैसी है। सीतारमन का यह बयान जले पर नमक छिड़कने जैसा है। सवाल यह उठता है कि आखिर निर्मला सीतारमण ने ऐसा बयान क्यों दिया?

Dollar Vs Rupee : दो दशक में रुपया इतना हुआ कमजोर

साल 2000 में प्रति डॉलर हमें 44.94 रुपए देना पड़ता था। इसके बाद क्रमश: 2001 में 47.18, 2002 में 48.61, 2003 में 46.58, 2004 में 45.31, 2005 में 44.10, 2006 में 45.30, 2007 में 41.34, 2008 में 43.50, 2009 में 48.40, 2010 में 45.72, 2011 में 46.67, 2012 में 53.43, 2013 में 58.59, 2014 में 63.33, 2015 में 64.15, 2016 में 67.19, 2017 में 65.12, 2018 में 69.79, 2019 में 70.42, 2020 में 74.10, 2021 में 73.91 और 2022 में हमें प्रति डॉलर 82 रुपए 29 पैसे देने पड़ते हैं।

Digital Rupee Explained: कैसे काम करेगी भारत की पहली वर्चुअल करेंसी?

Digital Rupee Explained: कैसे काम करेगी भारत की पहली वर्चुअल करेंसी?

वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman ने वित्त वर्ष 2022-23 के Budget भाषण में Digital Rupee को लेकर एक बड़ा ऐलान किया है. वित्त मंत्री के मुताबिक, Digital Rupee को Reserve Bank of India (RBI) की तरफ से जारी किया जाएगा. आपको बता दें, वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman ने अपने Budget भाषण के दौरान कहा, कि “वित्त वर्ष 2022-23 की शुरुआत में RBI की डिजिटल करेंसी को लॉन्च किया जाएगा और यह डिजिटल इकोनॉमी के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को एक बूस्ट प्राप्त होगा”.

Digital Rupee ब्लॉकचेन समेत अन्य टेक्नोलॉजी पर आधारित डिजिटल करेंसी होगी. वैसे तो, हम सब डिजिटल या वर्चुअल करेंसी को Bitcoin, Dogecoin के रूप में जानते हैं, लेकिन इन डिजिटल करेंसी को RBI की तरफ से कोई मान्यता प्राप्त नहीं है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि Digital Rupee पहली वर्चुअल करेंसी होगी, जिसे RBI की ओर से जारी किया जाएगा और Central Bank Digital Currency (CBDC) इसे रेगुलेट करेगी. आइए जानते हैं, कि आखिर Digital Rupee कैसे काम करेगी, और यह बाकी प्राइवेट डिजिटल करेंसी से कैसे अलग होगी?

क्या है CBDC और कौन करेगा लॉन्च

आपको बता दें, कि आगामी वित्त वर्ष में CBDC को लॉन्च करेगी. CBDC एक लीगल टेंडर है, जिसे सेंट्रल बैंक एक डिजिटल रूप में जारी करती है. यह कागज में जारी एक फिएट मुद्रा के समान है और किसी भी अन्य फिएट मुद्रा के साथ लेनदेन करने योग्य है. वहीं, अगर लीगल टेंडर को समझा जाए तो, हम लीगल टेंडर को भारतीय मुद्रा के रूप में समझ सकते हैं, जिसे लेने से कोई मना नहीं कर सकता. इसी प्रकार Digital Rupee एक लीगल टेंडर है, जिसे RBI जारी करेगी. यह अन्य प्राइवेट डिजिटल करेंसी के जैसी नहीं है. साथ ही आपको बता दें, कि CBDC को नोट के साथ बदला भी जा सकेगा.

क्या होती है Cryptocurrency

Cryptocurrency एक ऐसी करेंसी है, जिसे हम महसूस या देख नहीं सकते, यानी यह एक डिजिटल या वर्चुअल करेंसी है जिसे ऑनलाइन वॉलेट में ही रखा जा सकता है. लेकिन इसे भारत समेत कई अन्य देशों में मान्यता प्राप्त नहीं है. Digital Rupee जारी करने के बाद निश्चित तौर पर सरकार का अगला कदम दूसरी अन्य प्रकार की डिजिटल करेंसी पर रोक लगाना ही होगा. Digital Rupee भी एक वर्चुअल करेंसी की तरह ही काम करेगी और इसे देश में लेनदेन के लिए कानूनी तौर पर मान्यता प्राप्त होगी.

क्या है ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी

ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी में डाटा ब्लॉक्स मौजूद होते हैं, इन ब्लॉक्स में करेंसी को डिजिटली रूप में रखा जाता है. यह सारे ब्लॉक्स आपस में एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए होते हैं. जिससे डेटा की एक लंबी चेन बन जाती है, जिसे ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी कहा जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि इन डाटा ब्लॉक्स में सारी लेन-देन की जानकारी डिजिटल रूप में सुरक्षित रहती है, और साथ ही प्रत्येक ब्लॉक एंक्रिप्शन के द्वारा सुरक्षित होते हैं.

आपको बता दें, कि ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी डिसेंट्रलाइज्ड करेंसी होती है. अगर इसे आसान भाषा में समझा जाए, तो करेंसी की कीमत को कम या ज्यादा नहीं किया जा सकता. ऐसे में Digital Rupee में मुनाफे की गुंजाइश ज्यादा मानी जा रही है.

Digital Rupee बाकी वर्चुअल करेंसी की तुलना में कैसे है अलग?

Digital Rupee बाकी वर्चुअल करेंसी से अलग होगी, क्योंकि Digital Rupee को RBI जारी करेगी और यह करेंसी CBDC के तहत काम करेगी. बता दें, कि CBDC को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है. ऐसे में Digital Rupee में निवेश करना बाकी वर्चुअल करेंसी की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जा रहा है.

कितने तरह की होती हैं डिजिटल करेंसी ?

वर्तमान में बाज़ार में कई तरह की डिजिटल करेंसी मौजूद है. लेकिन मुख्यतः डिजिटल करेंसी दो तरह की होती है. पहली रिटेल डिजिटल करेंसी, जिसे आम लोग और कंपनियों के लिए जारी किया जाता है. दूसरी होलसेल डिजिटल करेंसी, जिसका इस्तेमाल वित्तीय संस्थानों द्वारा किया जाता है.

भारत सरकार द्वारा Digital Rupee को लेकर एक बड़ा कदम उठाया जा रहा है. इसकी पूरी प्रक्रिया होने में अभी समय लगेगा. RBI, भले ही इसे जारी करने के लिए तैयार है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है, जब तक संसद में क्रिप्टो कानून पारित नहीं हो जाता. भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत, मुद्रा को लेकर जो मौजूदा आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा प्रावधान हैं, वह भौतिक मुद्रा रूप को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं. जिसके परिणामस्वरूप सिक्का अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट में भी संशोधन की आवश्यकता होगी.

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आठ फीसदी मजबूत हुआ युवान, आखिर कैसे गिरती GDP का नहीं पड़ रहा कोई असर

चीन की अर्थिक विकास दर गिरती जा रही है, लेकिन उसकी मुद्रा लगातार मजबूत बनी हुई है। ये बात वित्तीय बाजार में कयास और जिज्ञासा का विषय बन गई है। 2021 में अब तक चीन की मुद्रा युवान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आठ फीसदी मजबूत हो चुकी है।

अमेरिका स्थित कैपिटल मार्केट्स ट्रेडिंग फर्म- बेनॉकबर्न ग्लोबल फॉरेक्स के महा-प्रबंधक मार्क शैंडलर के मुताबिक इस साल युवान का प्रदर्शन दुनिया की सभी मुद्राओं के बीच सबसे अच्छा रहा है। विश्लेषकों ने कहा है कि 2022 में भी ये स्थिति जारी रहेगी।

दूसरी तरफ, चीन की अर्थव्यवस्था ऊंची महंगाई दर, रियल एस्टेट में गिरावट, और प्राइवेट सेक्टर पर जारी सरकारी बंदिशों से मुश्किल में है। लेकिन लिउ ने कहा कि युवान की मजबूत स्थिति से चीन को बड़ी मदद मिल रही है। उसका असर चीनी निर्यात पर पड़ सकता है।

चीन के सेंट्रल बैंक- पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के मुताबिक चीन के 3.9 ट्रिलियन (620 बिलियन डॉलर) मूल्य के बॉन्ड्स अब दूसरे देशों के पास हैं। इस ट्रेंड का असर यह हुआ कि अक्तूबर में बॉन्ड के अंतरराष्ट्रीय इंडेक्स बनाने वाली एजेंसी एफटीएसई रसेल ने चीन सरकार के बॉन्ड्स को अपने फ्लैगशिप सूचकांक में शामिल कर लिया।

इन 5 देशों के पास नहीं हैं खुद के ‘करेंसी’ दूसरे देश की मुद्रा से चला रहे काम

दुनिया में कई सारे ऐसे देश हैं जो न तो अपनी खुद की मुद्रा छापते हैं और न ही उनके पास खुद की मुद्रा है. यानी इन देशों के पास खुद का पैसा नहीं है.

By इंडिया रिव्यूज डेस्क Last updated Jan 24, 2022 2,198 0

भारत में जब भी आपको कोई चीज खरीदनी होती है तो आप उस व्यक्ति को रुपये देकर उसकी रकम अदा कर देते हैं. रुपया भारत की मुद्रा है और भारत खुद इसे छापता है. लेकिन दुनिया में कई सारे ऐसे देश हैं जो न तो अपनी खुद की मुद्रा छापते हैं और न ही उनके पास खुद की मुद्रा है. यानी इन देशों के पास खुद का पैसा नहीं है. (Without Currency Country) ये देश दुसरे देशों की मुद्रा से अपना काम चला रहे हैं. ऐसे ही 5 देशों के बारे में आप यहाँ जानने वाले हैं जिनके पास खुद की मुद्रा नहीं है.

जिम्बाब्वे की मुद्रा (Zimbabwe Currency)

जिम्बाब्वे पहले एक समृद्ध देश हुआ करता था. पहले ज़िम्बाब्वे के पास खुद की मुद्रा ‘ज़िम्बाब्वे डॉलर’ हुआ करती थी. साल 2009 में ज़िम्बाब्वे सरकार ने जरूरत से ज्यादा नोट छापे और ज़िम्बाब्वे के हर नागरिक के पास बोरे भर-भर कर नोट हो गए. आलम ये हुआ कि ज़िम्बाब्वे को महा महंगाई के दौर से गुजरना पड़ा. एक सेबफल लेने के लिए आपको एक बोरी ज़िम्बाब्वे डॉलर लेकर जाना पड़ता था.

देश में हुए इस महंगाई के दौर ने ज़िम्बाब्वे को खुद की मुद्रा खत्म करने की ओर प्रेरित किया. साल 2009 में जिम्बाब्वे ने अपनी खुद की मुद्रा समाप्त कर दी. अब जिम्बाब्वे में अलग-अलग देशों की मुद्रा चलती है. जैसे दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा रैंड, ब्रिटिश पाउंड, यूरो, येन, यूएस डॉलर, ऑस्ट्रेलियन डॉलर.

इक्वाडोर की मुद्रा (Ecuador Currency)

दक्षिण अमेरिका में बसा खूबसूरत देश इक्वाडोर पहले काफी समृद्ध हुआ करता था. ये मुख्य रूप से अपने तेल संसाधनों पर निर्भर था. इक्वाडोर पर कई बार आर्थिक संकट आए जिसके चलते वो 10 बार दिवालिया हो चुका है.

Ecuador

साल 2000 में इक्वाडोर ने एक बड़े आर्थिक संकट का सामना किया जिसके बाद इसकी अर्थव्यवस्था कभी उभर नहीं पाई. ये देश कर्ज में चला गया. जिसके चलते इस देश को अपनी मुद्रा खत्म करनी पड़ी. अब इस देश में यूएस डॉलर चलता है.

मोनाको की मुद्रा (Monaco Currency)

यूरोपीय महाद्वीप में बसा मोनाको एक बहुत ही छोटा और खूबसूरत देश है. वेटिकन सिटी के बाद यदि कोई छोटा देश है तो वो मोनाको है. मोनाको पूरी तरह से फ्रांस पर आश्रित है. इसलिए यहाँ फ्रांस की मुद्रा यूरो मान्य है.

Monaco

फ्रांस की सबसे खास बात ये है कि यहाँ कोई गरीब नहीं है. इस देश की जीडीपी दुनिया में दूसरे नंबर पर आती है. यहाँ की अपराध की दर भी सबसे कम है. इतनी खूबियों के बावजूद भी इस देश की अपनी कोई मुद्रा नहीं है.

पनामा की मुद्रा (Panama Currency)

पनामा पेपर का नाम तो आपने खूब सुना होगा क्योंकि हर दो तीन महीने में पनामा पेपर लीक होते हैं और उनमें किसी सेलिब्रिटी का नाम आता है. असल में पनामा एक देश है जो मध्य अमेरिका में बसा है.

Panama

साल 1903 में अमेरिका की मदद से ये कोलम्बियाइ संघ से अलग हुआ और स्वतंत्र हुआ. अमेरिका का इस देश पर काफी प्रभाव है जिसके चलते यहाँ अमेरिकन डॉलर ही चलता है. यहाँ की पूरी अर्थव्यवस्था को अमेरिकन डॉलर कंट्रोल करता है.

नाउरु की मुद्रा (Nauru Currency)

नाउरु एक द्वीप राष्ट्र है. इसे दुनिया का सबसे छोटा द्वीप राष्ट्र कहा जाता है. इसका क्षेत्रफल 8.1 वर्ग किलोमीटर है. यहाँ की जनसंख्या 10 हजार है. ये एक ऐसा देश है जिसके पास न तो खुद की सेना है, न ही राजधानी है और न ही खुद की मुद्रा है.

Nauru

यहाँ पर ऑस्ट्रेलियन डॉलर मान्य है. इसके पीछे वजह ये है कि ये देश पहले जर्मनी के अधीन था. पहले विश्वयुद्ध के दौरान ऑस्ट्रेलिया ने इसे जर्मनी से आजाद कराया था जिसके चलते यहाँ ऑस्ट्रेलिया का प्रभुत्व है.

ये वो देश हैं जिनकी खुद की मुद्रा नहीं है. इनकी खुद की मुद्रा नहीं होने की भी अपनी वजह है. कोई आर्थिक संकट के चलते अपनी मुद्रा को नहीं संभाल पाया तो किसी देश पर अभी भी दूसरे देश का प्रभुत्व है इसलिए वे दूसरे देशो की मुद्रा चला रहे हैं.

usd vs inr : चढ़ता डॉलर, गिरता रुपया !आखिर क्यों?

usd vs inr

कोई आश्चर्य नहीं, USD डॉलर (usd vs inr) दुनिया में सबसे लोकप्रिय, शक्तिशाली मुद्रा में से एक है। यह दुनिया भर में चर्चा का एक केंद्रीय बिंदु रहा है। अमेरिका एक शक्तिशाली देश है , जिसकी मुद्रा दुनिया में सबसे शक्तिशाली मुद्रा है।अधिकांशतः हर देश इसे स्वीकार करता है !

भारत की आजादी के साथ प्रारंभ हुआ रुपए और डॉलर का खेल ,1947 में जहां रुपया ₹4.16 पैसे था वह 2020 में ₹75 के पास पहुंच गया है। यह हर साल रुपए की गिरती कीमत हर भारतीय के मन में, एक चिंता का विषय बनी रहती है।

USD डॉलर की Universal Acceptance पर भरोसा किया जा सकता है ,testimonials –185 अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त मुद्राओं को उनके देशों के बाहर बहुत कम कारोबार किया जाता है। यूरो और येन के साथ दुनिया में तीन सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्राओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध, यूएसडी $ वैश्विक व्यापार का लगभग 64% बनाता है। इस प्रकार, यह दुनिया की वास्तविक मुद्रा है। 1947 में अपनी आजादी के बाद से सभी भारतीय वर्षों से अमेरिकी डॉलर के मूल्य रूपांतरणों (Exchange Rate ) को जानना चाहते हैं तो 1947 से 2020 तक की डॉलर यात्रा को देखना दिलचस्प होगा।

usd vs inr

डॉलर की सापेक्ष , भारतीय रुपए के (usd vs inr) लगातार गिरने के कुछ मुख्य कारण :

1. Foreign direct investment ( FDI ), foreign portfolio investments ( FPI) and trade deficit (total exports-imports) में असंतुलन होना! आइए जानते हैं FDI , FPI एवं Trade Deficit के बारे में !

FDI : एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश FDI कहलाता है।

FPI : किसी विदेशी व्यक्ति या कंपनी द्वारा किसी भारतीय कंपनी में लगने वाले पैसे को FPI कहा जाता है। विदेशी निवेशक उस कंपनी के शेयर या बांड खरीद सकता है !
Trade Deficit : आयात एवं निर्यात का अंतर ।

2. (usd vs inr )डॉलर का वैश्विक रूप से मजबूत होना :दुनिया का 85% व्यापार डॉलर $ में होता है ,दुनिया भर का कर्ज 39% डॉलर $ में दिया जाता है। यह भी रुपए आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा के लगातार कमजोर होने का कारण है।

3. विकासशील देशों की मुद्रा का कमजोर होना : किसी भी देश की मुद्रा में जब गिरावट आती है तो उस देश के उत्पादों की मांग अन्य देश में बढ़ जाती है, इस कारण से निर्यात बढ़ जाता है एवं आयात के अधिकतर बिल विदेशी मुद्रा में चुकाने होते हैं। मुद्रा के गिरने के कारण अपने देश की मुद्रा अधिक खर्च होती है।

4. विदेशी मुद्रा की जरूरतें : आयात के बिलों का भुगतान USD $ में किया जाता है !आपात स्थिति के लिए अपने देश का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त मात्रा में इकट्ठा करके रखना हर देश की एक जरूरत है ।सभी बिलों का भुगतान विदेशी मुद्रा यूएस डॉलर में ही किया जा रहा है। इस कारण से विदेशी मुद्रा यूएस डॉलर का कितना भंडारण (Foreign Reserve ) किस देश ने किया है, वह उस देश की आर्थिक शक्ति को दिखाता है|

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