शेयर बाजार में कमाना है पैसा, तो सीख लीजिए ये दो तरह के ज्ञान.
नई दिल्ली. शेयर मार्केट में निवेश करने से पहले इसकी पर्याप्त समझ होनी चाहिए. किसी भी स्टॉक को खरीदने के लिए उसके बारे में अच्छे से अध्ययन करना होता है और यह दो तरीकों टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस के जरिए किया जाता है. लेकिन, आम निवेशक को इसके बारे में ज्यादा समझ नहीं होती है लेकिन बाजार में सक्रिय रूप से काम करने वाले निवेशक और मार्केट एक्सपर्ट्स इसकी गहरी समझ रखते हैं. हालांकि, टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस की समझ विकसित करना ज्यादा मुश्किल नहीं है.
आइये जानते हैं कि आखिर टेक्निकल और फंटामेंटल एनालिसिस क्या है और कैसे इसके बारे में समझ विकसित करके शेयर बाजार में सक्रिय निवेशक के तौर पर काम किया जा सकता है. इन दोनों तरीकों से आप शेयर की कीमत का सही अनुमान और भविष्य से जुड़ी संभावनाओं के बारे में पता लगा सकते हैं, साथ ही स्टॉक कब खरीदें और कब बेचें, यह निर्णय लेने में भी आपको मदद मिलेगी.
क्या है टेक्निकल एनालिसिस?
टेक्निकल एनालिसिस में किसी भी शेयर के चार्ट को देखकर उसकी डेली, वीकली और मंथली मूवमेंट और प्राइस के बारे में जानकारी हासिल की जाती है. चार्ट के जरिए सबसे शेयर के सपोर्ट और रेजिस्टेंस देखा जाता है. यहां सपोर्ट से मतलब है कि स्टॉक कितनी बार किसी एक खास भाव से ऊपर की ओर गया है. ज्यादातर एनालिस्ट सपोर्ट लेवल पर ही खरीदी की सलाह देते हैं.
वहीं, रेजिस्टेंस का मतलब है कि कोई स्टॉक कितनी बार किसी एक भाव से फिर से नीचे की ओर लौटकर आया है. अगर कोई शेयर अपने रेजिस्टेंस को तोड़कर ऊपर की ओर जाता है तो इसे ब्रेकआउट कहते हैं यानी कि अब शेयर का भाव और बढ़ेगा. इसके विपरीत, यदि स्टॉक सपोर्ट लेवल को तोड़ देता है तो उसके नीचे जाने की संभावना ज्यादा रहती है.
टेक्निकल एनालिसिस में अहम इंडिकेटर
टेक्निकल एनालिसिस में इंडिकेटर अहम टूल्स होते हैं. दरअसल ये शेयर की मूवमेंट को लेकर अहम संकेत देते हैं. इनमें मूविंग एवरेज, RSI, MACD, सुपर ट्रेंड और बोलिंजर बैंड समेत कई इंडिकेटर्स शामिल हैं. हर इंडिकेटर का अपना महत्व है लेकिन शेयर बाजार में सक्रिय ज्यादातर निवेशक मूविंग एवरेज, MACD और RSI इंडिकेटर को अहम मानते हैं.
मूविंग एवरेज इंडिकेटर के जरिए किसी भी स्टॉक के पिछले 5, 10, 20, 50, 100 और 200 दो तरह के निवेशक दिन के एवरेज प्राइस का अध्ययन किया जाता है. अलग-अलग टाइम फ्रेम पर स्टॉक के भाव में बढ़त और गिरावट से तेजी व मंदी का अनुमान लगाया जाता है. वहीं, RSI यानी रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स एक ग्राफ के जरिए यह प्रदर्शित करता है कि शेयर में कितनी खरीदारी और बिकवाली हावी है.
फंडामेंटल एनालिसिस क्यों जरूरी?
फंडामेंटल एनालिसिस में किसी भी कंपनी दो तरह के निवेशक के बिजनेस मॉडल और ग्रोथ स्टोरी का अध्ययन किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से कंपनी के फाइनेंशियल्स यानी आर्थिक आंकड़ों पर नजर डाली जाती है. इनमें P/E Ratio और P/B Ratio जैसे रेशियो को देखा जाता है. अगर प्राइस अर्निंग रेशियो की वैल्यू कम है तो इसका मतलब है कि इसमें ग्रोथ की काफी गुंजाइश है. वहीं, प्राइस टू बुक वैल्यू रेशियो कम है तो इसका मतलब हुआ कि स्टॉक अंडरवैल्यूड है.
फंडामेंटल एनालिसिस में कम्पनी की सम्पत्तियों तथा देनदारियों की अध्ययन करके कम्पनी की नेट वैल्यू निकाली जाती है. इसके आधार पर कम्पनी के स्टॉक की कीमत का अनुमान लगाया जाता है. इसमें कम्पनी की डिविडेंड पॉलिसी भी देखी जाती है. इस तरह की स्टडी से अंडरवैल्यूड कंपनियों के बारे में पता लगाया जा सकता है जिनके भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना होती है.
कैसे सीखें टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस
टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस के बारे में जानने के बाद अब सवाल उठता है कि यह ज्ञान कहां से लिया या सीखा जाए. टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस के लिए कई बुक्स और इंटरनेट पर ऑनलाइन कंटेंट उपलब्ध है.
इसके अलावा आप नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटी मार्केट (NISM) के जरिए शेयर मार्केट में बतौर रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइज के तौर पर काम करने के लिए कई कोर्सेस ज्वाइन कर सकते हैं. इनमें टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस से जुड़े विषयों को कवर किया जाता है.
एक ही निवेश पर हो सकती है दो तरह से इनकम, समझे डिविडेंड स्टॉक के फायदे
Dividend Stock: डिविडेंड देने वाले शेयर निवेश के लिए सुरक्षित माने जाते हैं.
Dividend Stock: डिविडेंड देने वाले शेयर निवेश के लिए सुरक्षित माने जाते हैं.
Dividend Stocks: क्या आपने कभी सोचा है कि एक ही जगह निवेश करें और उस पर 2 तरह से आपको मुनाफा हो. बहुत से लोगों को इस बारे में ज्यादा अंदाजा नहीं होगा. लेकिन यह संभव है और वह भी शेयर बाजार में. शेयर बाजार में निवेश का एक तरीका ऐसा भी है कि उस पर दो तरह से कमाई की जा सकती है. ऐसा लाभ आप ज्यादा डिविडेंड देने वाले शेयरों में निवेश कर उठा सकते हैं.
शेयर बाजार की चाल हर समय एक जैसी नहीं रहती है. बाजार में कभी तेजी आती है तो कभी छोटे सेंटीमेंट से भी बाजार नीचे आने लगता है. जब बाजार में गिरावट शुरू होती है तो कई शेयरों का भाव भी गिरने लगता है और निवेशकों का रिटर्न निगेटिव हो सकता है. ऐसे में निवेशकों के मन में डर भी बैठने लगता है. जो निवेशक ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते हैं, कई बार वे इस कंडीशन में शेयर भी बेचने लगते हैं. अगर आप भी जोखिम नहीं लेना चाहते हैं तो डिविडेंड स्टॉक बेहतर विकल्प है.
क्या है डिविडेंड?
कुछ कंपनियां अपने शेयरधारकों को समय-समय पर अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा देती रहती हैं. मुनाफे का यह हिस्सा वे शेयरधारकों को डिविडेंड के रूप में देती हैं. इन्हें डिविडेंड यील्ड स्टॉक भी कहते हैं. गर इन कंपनियों के शेयर खरीदते हैं तो इसमें 2 तरह से फायदा होगा.
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Dividend Stocks: 2 तरह से फायदा
-एक तो फायदा यह होगा कि कंपनी होने वाले मुनाफे का कुछ हिस्सा आपको देगी.
-दूसरी ओर शेयर में तेजी आने से भी आपको मुनाफा होगा. मसलन किसी कंपनी के शेयर में आपने 10 हजार रुपए निवेश किए हैं और एक साल में शेयर की कीमत 25 फीसदी चढ़ती है तो आपका निवेश एक साल में बढ़कर 12500 रुपये हो जाएगा.
ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों में निवेश का एक फायदा यह है कि आप अपने शेयर बेचे बिना भी इनकम कर सकते हैं.
मुनाफे वाली कंपनियां देती हैं डिविडेंड
आमतौर पर पीएसयू कंपनियां डिविडेंड के लिहाज से अच्छी मानी जाती हैं. जानकारों का कहना है कि अगर कोई कंपनी डिविडेंड दे रही है तो इसका मतलब साफ है कि उस कंपनी को मुनाफा आ रहा है. कंपनी के पास कैश की कमी नहीं है. डिविडेंड देने के ऐलान से शेयर को लेकर भी सेंटीमेंट अच्छा होता है और उसमें तेजी आती है. हालांकि ऐसे शेयर चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि निवेश उसी कंपनी में करें जिनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर ग्रोथ के साथ रेग्युलर डिविडेंड दो तरह के निवेशक देने का हो.
ये कंपनियां देती है डिविडेंड
देश में ऐसी कंपनियों की कमी नहीं हैं, जो अपने शेयरधारकों को समय-समय पर डिविडेंड देती हैं. ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनियों की सूची में कोल इंडिया, वेदांता लिमिटेड, बीपीसीएल, आईओसी, आरईसी, NMDC, NTPC और सोनाटा सॉफ्टवेयर जैसी कंपनियां शामिल हैं.
(Disclaimer: हम यहां निवेश की सलाह नहीं दे रहे हैं. यह डिविडेंड स्टॉक के बारे में एक जानकारी है. स्टॉक मार्केट के अपने जोखिम है. निवेश के पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.)
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Zomato Shares: दो दिन में 23% लुढ़के शेयर, निवेशकों को 8 महीने में हुआ 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान
Zomato ने मंगलावर को अपना नया निचला स्तर छुआ और NSE पर शेयर करीब 13 फीसदी लुढ़ककर 41.20 रुपये के निचले स्तर तक चला गया
Zomato Shares: ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो (Zomato) ने मंगलावर को अपना नया निचला स्तर छुआ। NSE पर शेयर करीब 13 फीसदी लुढ़ककर 41.20 रुपये के स्तर तक चला गया, जो इसका अब तक का सबसे निचला स्तर है। इसके साथ Zomato के शेयरों में पिछले दो दो तरह के निवेशक दिनों में करीब 23 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
जोमैटो के शेयर मंगलवार को कारोबार खत्म होने के समय 12.61 फीसदी की गिरावट के साथ 41.60 रुपये पर बंद हुए। इससे पहले सोमवार को भी इसके शेयरों में 10.5 फीसदी की गिरावट आई थी। इस तरह पिछले दो दिनों में Zomato के शेयरों में 23 फीसदी से ज्यादा घट चुकी है। साथ ही इसकी कीमत इसके 76 रुपये के IPO प्राइस भी 46% नीचे आ गई है।
निवेशकों को 1.01 लाख करोड़ का नुकसान
Zomato के शेयरों का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर 169.10 रुपये है, जो इसने 16 नवंबर 2021 को छुआ था। उस समय जोमैटो के शेयरों का मार्केट कैपिटलाइजेशन 1.33 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया था। हालांकि पिछले कुछ महीनों से शेयरों में जारी लगातार गिरावट के चलते मंगलवार को यह घटकर करीब 31,870 हजार करोड़ रुपये पर आ गया। इस तरह नवंबर 2021 के बाद से जोमैटो के निवेशकों को अब तक करीब 1.01 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है।
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क्यों आई जोमैटो के शेयरों में गिरावट
Zomato में यह गिरावट उसके शुरुआती निवेशकों के लिए एक साल का लॉक-इन पीरियड खत्म होने के बाद आया है। इन निवेशकों के पास कंपनी के 78 फीसदी या करीब 613 करोड़ शेयर थे। शनिवार 23 जुलाई को इन निवेशकों के लिए एक साल का लॉक-इन पीरियड खत्म हुआ था। इसके बाद से ही जोमैटो के शेयरों में जबरदस्त बिकवाली देखी जा रही है।
क्या है लॉक इन पीरियड का नियम?
लॉक इन पीरियड का नियम उन कंपनियों पर लागू होता है, जिनमें प्रमोटर्स नहीं होते हैं। जोमैटो भी ऐसी ही कंपनियों में शामिल है, जिनमें प्रमोटर होल्डिंग्स जीरो है। नियमों के मुताबिक, जिस कंपनी में प्रमोटर्स नहीं होते हैं उनमें IPO से पहले कंपनी के पास मौजूद इक्विटी शेयर कैपिटल एक शेयरों के अलॉटमेंट से एक साल तक लॉक हो जाती है। इस दौरान, ये शेयरहोल्डर अपना एक भी शेयर बेच नहीं सकते हैं।
Jefferies को उम्मीद, 100 रुपये तक जाएगा जोमैटो का शेयर
विदेशी ब्रोकरेज फर्म जेफरीज (Jefferies) ने Zomato के शेयरों के लिए Buy रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस 100 रुपए तय किया है। ब्रोकरेज फर्म का कहना है कि खराब सेंटीमेंट की वजह से खरीदारी करने का शानदार मौका है। Jefferies को उम्मीद है कि इस सेगमेंट की प्रॉफिटबिलिटी सुधरेगी, इंडस्ट्री का स्ट्रक्चर पहले से ज्यादा बेहतर होगा और आने वाले दिनों में कंपनी कैश बचा पाएगी।
MoneyControl News
First Published: Jul 26, 2022 4:51 PM
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Lump Sum & SIP: आपके लिए क्या सही है, और कब?
निवेशक अपने फंड को दो तरह से बाजार में लगा सकते हैं। यह एकमुश्त (Lump Sum) या सिप (SIP) दोनों में से कुछ भी हो सकता है। अलग-अलग परिस्थितियों में दो तरह के निवेशक दो तरह के निवेशक दोनों ही कारगर साबित हो सकती हैं। इस आर्टिकल में हम आपको यह समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर इन दोनों का नफा-नुकसान क्या है व आपके लिए दोनों में से कौन सी ज्यादा कारगर है।
नए निवेशकों के लिए निवेश एक मुश्किल काम हो सकता है। रिस्क मैनेजमेंट इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है। आपके निवेश की ग्रोथ की संभावनाएं काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती हैं कि आप अपना पैसा किस तरह से लगा रहे हैं।
निवेश दो तरह से किया जा सकता है:
एक ही बार में एक बड़ा अमाउंट निवेश करना, दो तरह के निवेशक दो तरह के निवेशक जिसे आमतौर पर एकमुश्त (Lump Sum) कहा जाता है। या,
थोड़ी-थोड़ी अमाउंट को समय-समय पर निवेश करना जैसे हर हफ्ते, महीने या तिमाही पर। यह सिप (SIP) की शैली होती है।
आइए अब दोनों की ही विशेषताओं और खामियों को जानने की कोशिश करते हैं:
1) एकमुश्त निवेश (Lump Sum Investment) क्या है?
एकमुश्त (Lump Sum) निवेश का अर्थ है कि निवेशक अपनी पूंजी एक ही बार में निवेश करता है और आवश्यकता पड़ने पर ही दोबारा पूंजी लगाता है यानी टॉप अप करता है।
एकमुश्त निवेश के क्या लाभ हैं?
यह विधि आम तौर पर अनुभवी या मोटी रकम रखने वाले निवेशकों के लिए सही होती है। इस विधि में अपनी जोखिम की क्षमता को बढ़ाना भी जरूरी है।
एकमुश्त निवेश करने वाले निवेशक बाजार के उतार-चढ़ाव के रुख को अपने अनुसार मोड़ सकते हैं। यह शैली आम तौर पर उन व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक है, जिनके पास निवेश के लिए एक बड़ी राशि है।
एकमुश्त निवेश पर दो तरह के निवेशक लाभ कमाने की संभावना तब अधिक होती है जब बाजार अस्थिर दौर से गुजरा हो और एक बार फिर ऊपर चढ़ने की तैयारी कर रहा हो।
यह वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भी उपयुक्त है। इसके साथ ही यह लॉन्ग टर्म में बेहतरीन वेल्थ क्रिएशन का भी एक अच्छा तरीका है।
एकमुश्त निवेश के क्या नुकसान हैं?
जब आप एकमुश्त तरीके से निवेश करते हैं, तो बाजार की टाइमिंग इसके लिए बहुत जरूरी हो जाती है। यदि निवेश तब किया जाता है, जब बाजार पहले से ही ऊपर पहुंचा हुआ है, तो रिस्क-रिवार्ड अनुपात (risk-reward ratio) कम हो जाता है। वहीं बाजार में गिरावट से शॉर्ट टर्म में ‘पोर्टफोलियो डिवैल्यूएशन’ भी हो सकता है। इसका मतलब यह है कि उच्च स्तर पर खरीदे जाने पर निवेशक के पास बहुत कम स्टॉक यूनिट रह जाती हैं।
अगर फंड केवल छोटी अवधि के लिए निवेश किया जा रहा है, तब भी यह तरीका कारगर नहीं है। इससे आपमें निवेश को लेकर कोई अनुशासन भी कायम नहीं होता। चूंकि निवेशक में इससे बचत की आदत पैदा नहीं होती और वह पैसा जमा करने के लिए अपने खर्चों में कहीं भी दो तरह के निवेशक दो तरह के निवेशक कोई कटौती नहीं करता है।
2) सिप निवेश (SIP Investing) क्या है?
सिप या SIP कम बजट वाले उन निवेशकों के लिए एक बेहतरीन जरिया है, जो नियमित अंतराल पर कम मात्रा में निवेश करना चाहते हैं। निवेश साप्ताहिक, मासिक या वार्षिक आधार पर किया जा सकता है और धीरे-धीरे एक अच्छा अमाउंट बन जाता है।
सिप (SIP) के क्या लाभ हैं?
SIP नए निवेशकों के लिए अच्छी शुरुआत हो सकती है क्योंकि वे इससे छोटी अमाउंट के साथ निवेश की दुनिया से जुड़ सकते हैं। यह नौकरी-पेशा लोगों के लिए भी उपयोगी हो सकती है क्योंकि इससे उनमें लंबे समय तक नियमित बचत की आदत भी विकसित होती है।
कुल मिलाकर SIP रुपया-लागत औसत (rupee-cost average) के माध्यम से लंबी अवधि में बाजार के उतार-चढ़ाव को सामान्य कर देती है। मतलब जब बाजार में तेजी होती है, तो कम यूनिट खरीदी जाती है। इसी तरह मंदी के दौरान कम कीमत पर अधिक यूनिट खरीदे जा सकते हैं। इससे एक वक्त के बाद प्रति यूनिट की कीमत औसतन सामान्य हो जाती है।
सिप (SIP) में एकमुश्त के बजाए ज्यादा लचीलापन होता है क्योंकि निवेशक अपनी गति और सुविधा के अनुसार इसमें निवेश कर सकता है। निवेशक अपने मौजूदा वित्तीय संसाधनों और अन्य दायित्वों पर विचार करने के बाद निवेश की योजना बना सकता है।
सिप (SIP) के नुकसान क्या हैें?
SIP के कारण निवेशक कई बाजार में उपलब्ध अच्छे अवसरों से चूक जाते हैं, जिसके लिए एग्रेसिव इंवेस्टमेंट एप्रोच की जरूरत पड़ती है।
निवेश अक्सर एक पूर्व निर्धारित तारीख पर किया जाता है। इसलिए बाजार के उतार-चढ़ाव के दौरान निवेश कर पाना मुश्किल होता है। ऐसे में इन अस्थिर परिस्थितियों का फायदा निवेशक नहीं उठा पाता है।
SIP उन निवेशकों के लिए भी सही जरिया नहीं हो सकता जिनकी नियमित आय नहीं है। कई बार समय के साथ निवेशक का मन बदल जाता है और वह SIP में निवेश करना छोड़ देता है। दूसरी दिक्कत यह है कि कई बार निवेशक इसमें ज्यादा पैसे नहीं डालते यानी आपकी SIP बहुत ही छोटी SIP होती है। ऐसे में जाहिर है मनचाहे रिटर्न का आना संभव नहीं हो पाता।
आपके लिए इन दोनों में से कौन सा सबसे अच्छा है?
शेयर बाजार बहुत तेजी से बदलता रहता है। यहां स्मार्ट निवेशक वह ही है जो बाजार के अनुसार अपनी चाल बदल सके और हर परिस्थिति का लाभ उठा सके।
आइए कुछ उदाहरणों से यह जानने की कोशिश करते हैं कि निवेशक एकमुश्त या सिप (SIP) की कौन सी तकनीक का उपयोग करके लाभ कमा सकता है।
उदाहरण 1:
मिस्टर X 10 रुपए की यूनिट लागत पर एक फंड में 2,00,000 रुपए की एकमुश्त निवेश करते हैं। अब अगर बाजार में तेजी है और फंड का मूल्य बढ़ना शुरू हो जाता है, तो मिस्टर X को अपने एकमुश्त निवेश से फायदा होगा।
SIP से यहां कोई खास फायदा नहीं पहुंचने वाला है। चूंकि मिस्टर X ज्यादा यूनिट खरीद कर यूनिट को समाप्त कर लेंगे क्योंकि उनका मूल्य एक अपट्रेंडिंग मार्केट में बढ़ रहा है। वहीं SIP में स्थिति में रिटर्न की दर कम हो जाएगी।
उदाहरण 2:
उदाहरण 1 में हमने देखा कि कैसे एकमुश्त निवेश अनुकूल परिस्थितियों में निवेशकों के लिए बेहतर रिटर्न देता है। हालांकि बाजार एक ऐसी जगह है बदलता रहता है। SIP इन उतार-चढ़ाव को जोखिमों को कम करके फायदा पहुंचाता है।
मान लें कि एकमुश्त के बजाय मिस्टर X ने SIP के माध्यम से अपने 2,00,000 रुपए का निवेश करने की सोची। उसने 10,000 रुपए की SIP की और पहले महीने में 10 रुपए में 1,000 यूनिट खरीद ली। अगर बाजार नीचे जाता है, तो अगले महीने वही यूनिट 10 रुपए का दाम कम हो जाएगा। मान लीजिए कि यूनिट का मूल्य 8 रुपए हो गया है। यहां मिस्टर X अगले महीने 10,000 रुपए में 1,250 यूनिट खरीद सकेंगे। यानी बाजार के उतार-चढ़ाव का फायदा आप यहां भरपूर उठा सकते हैं।
सौ बात की एक बात
दोनों तरीकों के नफे-नुकसान को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बढ़ते बाजार में एकमुश्त सबसे अच्छा काम करता है। वहीं गिरते बाजार में निवेशकों के लिए SIP बेहतरीन साबित हो सकती है। रिस्क मैनेजमेंट की दृष्टि से देखें तो इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव को झेलने की ज्यादा क्षमता होती है। बाजार में गिरावट से निवेशकों को लागत में औसत गिरावट से लाभ होता है।
इन दोनों में एक बात सामान्य है वह है कि आपको लंबे समय तक इनसे जुड़े रहना पड़ेगा। सबसे जरूरी बात यह है कि निवेशक को बचत और निवेशक की आदत को लंबे समय तक बनाए रखना चाहिए ताकि वह वेल्थ क्रिएशन की यात्रा का आनंद उठा सके।
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