शेयर बाजार में लगातार तीसरे दिन गिरावट, सेंसेक्स 61,000 अंक से नीचे फिसला

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, ‘‘वैश्विक बाजारों में सकारात्मक रुख भी घरेलू शेयर बाजारों में जोश भरने में विफल रहा। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक का ब्योरा जारी होने से भी घरेलू बाजार में बिकवाली हुई, क्योंकि इसमें केंद्रीय बैंक ने कुछ सख्त टिप्पणियां की हैं।’’

आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि इस समय नीतिगत कार्रवाई को रोकने की गलती महंगी साबित हो सकती है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हुई है।

चीन और कुछ अन्य देशों में कोविड-19 का संक्रमण बढ़ने के मद्देनजर देश में स्थिति की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की।

हेम सिक्योरिटीज के कोष प्रबंधक मोहित निगम ने कहा कि वैश्विक बाजारों में मजबूती के बावजूद चीन, जापान, कोरिया और ब्राजील में कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण घरेलू बाजारों का उत्साह जल्द ही फीका पड़ गया।

व्यापक बाजारों में बीएसई स्मॉलकैप 1.83 प्रतिशत और मिडकैप 0.77 प्रतिशत गिर गया।

क्षेत्रवार बात करें तो औद्योगिक सूचकांक में 1.78 प्रतिशत, उपयोगिता में 1.60 प्रतिशत, पू्ंजीगत वस्तुओं में 1.57 प्रतिशत, बिजली में 1.49 प्रतिशत, रियल्टी में 1.33 प्रतिशत और वाहन में 1.05 प्रतिशत की गिरावट हुई।

अन्य एशियाई बाजारों में दक्षिण कोरिया का कॉस्पी, जापान का निक्की और हांगकांग का हैंगसेंग लाभ में रहे, जबकि चीन का शंघाई कम्पोजिट निचले स्तर पर बंद हुआ।

मध्य सत्र के सौदों में यूरोपीय बाजार तेजी के साथ कारोबार कर रहे थे। अमेरिकी बाजार बुधवार को बढ़त के साथ बंद हुए।

अंतरराष्ट्रीय तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड 0.99 प्रतिशत चढ़कर 83.01 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर पहुंच गया।

शेयर बाजार के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बुधवार को शुद्ध रूप से 1,119.11 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

विश्व इतिहास में सबसे बड़ी महामंदी कब, कहाँ और क्यों आई थी?

वर्ष 1929 में शुरू हुई महामंदी के आने से पहले विश्व के उद्योगपतियों की धारणा यह थी कि “पूर्ती अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है”. इसी विचारधारा के कारण उद्योगपतियों ने उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया उसकी बिक्री पर नहीं. एक समय ऐसा आ गया कि बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ती ज्यादा हो गयी और मांग कम. इसी कारण पूरा विश्व महामंदी की चपेट में आ गया था.

Great depression of 1929

वर्ष 1930 की आर्थिक महामंदी इस दुनिया की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक मानी जाती है. इसे तीसा की मंदी भी कहा जाता है. इस घटना ने पूरी दुनिया में क्लासिकल अर्थशास्त्रियों की आर्थिक मान्यताओं को ख़त्म कर दिया था. इस मंदी के आने से पहले विश्व के उद्योगपतियों की धारणा यह थी कि “पूर्ती अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है”. इसलिए सभी लोग केवल उत्पादन पर ध्यान देते थे इस उत्पादन की मांग की फ़िक्र इन लोगों को नहीं थी. इसी विचारधारा के कारण उद्योगपतियों ने उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया उसकी बिक्री पर नहीं. इसी कारण पूरा विश्व महामंदी की चपेट में आ गया था.

वर्ष 1929 में अमेरिका से शुरू इस आर्थिक घटना ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था. इसके कारण बैंक दिवालिया हो गये थे, शेयर मार्किट धड़ाम हो गये थे जिसके कारण शेयर धारकों के करोड़ों डॉलर डूब गये थे, कंपनियों ने उत्पादन कार्य बंद कर दिया था लोग बेरोजगार हो रहे थे और कर्ज में दबे लोग आत्म हत्या कर रहे थे.

लेकिन यह सब किन कारणों से हुआ था और इसके पूरी दुनिया पर क्या प्रभाव पड़े थे इस सब की विवेचना इस लेख में आगे की जा रही है.

आर्थिक महामंदी की शुरुआत कब हुई थी?

वर्ष 1923 में अमरीका का शेयर बाज़ार चढ़ना शुरू हुआ और चढ़ता ही चला गया. लेकिन 1929 तक आते-आते इसमें अस्थिरता के संकेत आने लगे. अंततः 24 अक्टूबर 1929 को एक दिन मे क़रीब पाँच अरब डॉलर का सफ़ाया हो गया. अगले दिन भी बाज़ार का गिरना जारी रहा और 29 अक्टूबर 1929 को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और बुरी तरह गिरा और 14 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. इस तरह 29 अक्टूबर 1929 के दिन मंगलवार को 'ब्लैक ट्यूज़डे' की संज्ञा दी गयी. यह मंदी दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने तक अर्थात 1939 तक चली थी.

आर्थिक महामंदी के क्या कारण थे?

सही मायने में 1930 की महामंदी का कोई एक कारण नहीं था लेकिन बाजार में मांग का ना होना, बैंको का विफल होना और शेयर बाज़ार की भारी गिरावट को प्रमुख कारण माना जाता है जिसमें शेयर धारकों के 40 अरब डॉलरों का सफ़ाया हो गया था.

मेरे दृष्टिकोण से इस महामंदी के कारण प्रथम विश्व युद्ध के बाद अर्थात 1920 के दशक में अमेरिका में व्यापक पैमाने पर हुए ओवर प्रोडक्शन में छिपे हुए हैं. दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के बाद लोगों में विकास की उम्मीद जगी जिससे अमेरिका में औद्योगिक क्रांति हुई, ग्रामीण लोग अच्छी नौकरी के लिए शहरों की ओर विस्थापित हुए कृषि और औद्योगिक उत्पादों का व्यापक पैमाने पर उत्पादन हुआ लेकिन उत्पादन की तुलना में इन सभी चीजों की मांग नहीं बढ़ी जिससे कंपनियों की सेल्स कम हुई, चीजों का स्टॉक बढ़ा, बैंकों का लोन चुकना बंद हुआ, बैंक कंगाल हुए और शेयर मार्किट गिरा और फिर हालात बिगड़ते ही गये.

मंदी आने की प्रक्रिया इस प्रकार है;

सबसे पहले बाजार में मांग कम हुई जिससे कंपनियों का स्टॉक बढ़ा, उत्पादन घटा, नौकरियां गयीं, लोगों ने बैंकों के कर्ज चुकाने बंद कर दिए जिससे बैंकों के पास लोन देने की शक्ति कम हो गयी, कर्ज मिलने बंद हो गए और जिन लोगों का धन बैंकों में जमा था उन्होंने भी उसे निकालना शुरू कर दिया जिसके संयुक्त प्रभाव से बैंकिंग ढांचा चरमरा गया. लगभग सर्वोत्तम बाजार समय के दौरान आगे बढ़ें 9000 बैंकों का दिवाला निकल गया. बैंक में जमा राशि का बीमा न होने से लोगों की पूंजी ख़त्म हो गई. जो बैंक बचे रहे उन्होने पैसे का लेन-देन रोक दिया. लोगों ने अपने खर्च कम कर दिए फिर बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम होने लगी परिणाम स्वरुप कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया, जिससे कंपनियाँ बंद होने लगीं और जब उत्पादन नहीं होगा तो कोई कंपनी लोगों को नौकरी पर क्यों रखेगी फलतः नौकरियाँ जाने लगीं जिससे अमेरिका सहित पूरी दुनिया में महामंदी छा गयी थी.

great depression 1930

आर्थिक मंदी के प्रभाव;

1. अमेरिका में बेरोजगारी 15 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 30 लाख हो गई. यूरोप में आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका का यूरोपीय ऋण डूबने की स्थिति में आ गया. इस महामंदी का सबसे बड़ा नतीजा यह हुआ कि अमेरिका जैसे देशों को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए एक बड़ा फंडा हाथ लग गया. अमेरिका सहित विभिन्न देशों में सैन्य प्रसार-प्रचार से न केवल नौकरियों के द्वार खुले, बल्कि हथियारों के उत्पादन से अर्थव्यवस्थाओं में भी जान आ गई.

आज के दिन भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था की धुरी उसकी हथियारों की बिक्री ही है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जमकर हथियार बेचे और विश्व में सुपर पॉवर के तौर पर उभरा.

2. 1930 की महामंदी का पूरी दुनिया पर असर हुआ. ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था कृषि और औद्योगिक उत्पादों के निर्यात पर निर्भर थी इसलिए उस पर सबसे अधिक असर पड़ा. कनाडा में औद्योगिक उत्पादन 58% कम हो गया और राष्ट्रीय आय 55% गिर गई थी.

3. 1931 ई. में आर्थिक मंदी के कारण ब्रिटेन को स्वर्णमान का परित्याग करना पड़ा. सरकार ने सोने का निर्यात बंद कर दिया. ब्रिटिश सरकार ने सस्ती मुद्रा दर को अपनाया जिससे ब्याज दर में कमी आयी इससे विभिन्न उद्योगों को सस्ती दर पर लोन मिला जिससे औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला.

4. 1929 से 1932 के दौरान वैश्विक औद्योगिक उत्पादन की दर में 45 फीसदी की गिरावट आई थी.

5. इस मंदी के कारण 5 हजार से भी अधिक बैंक बंद हो गए थे.

इस प्रकार अमेरिका से शुरू हुई आर्थिक मंदी ने पूरे विश्व को प्रभावित किया था. उम्मीद है कि इस लेख को पढने के बाद आप समझ गए होंगे कि महामंदी किन कारणों से आई थी और इसने किन देशों के किस तरह से प्रभावित किया था.

इनाम पाना

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विश्व इतिहास में सबसे बड़ी महामंदी कब, कहाँ और क्यों आई थी?

वर्ष 1929 में शुरू हुई महामंदी के आने से पहले विश्व के उद्योगपतियों की धारणा यह थी कि “पूर्ती अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है”. इसी विचारधारा के कारण उद्योगपतियों ने उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया उसकी बिक्री पर नहीं. एक समय ऐसा आ गया कि बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ती ज्यादा हो गयी और मांग कम. इसी कारण पूरा विश्व महामंदी की चपेट में आ गया था.

Great depression of 1929

वर्ष 1930 की आर्थिक महामंदी इस दुनिया की सबसे बड़ी घटनाओं में सर्वोत्तम बाजार समय के दौरान आगे बढ़ें से एक मानी जाती है. इसे तीसा की मंदी भी कहा जाता है. इस घटना ने पूरी दुनिया में क्लासिकल अर्थशास्त्रियों की आर्थिक मान्यताओं को ख़त्म कर दिया था. इस मंदी के आने से पहले विश्व के उद्योगपतियों की धारणा यह थी कि “पूर्ती अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है”. इसलिए सभी लोग केवल उत्पादन पर ध्यान देते थे इस उत्पादन की मांग की फ़िक्र इन लोगों को नहीं थी. इसी विचारधारा के कारण उद्योगपतियों ने उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया उसकी बिक्री पर नहीं. इसी कारण पूरा विश्व महामंदी की चपेट में आ गया था.

वर्ष 1929 में अमेरिका से शुरू इस आर्थिक घटना ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था. इसके कारण बैंक दिवालिया हो गये थे, शेयर मार्किट धड़ाम हो गये थे जिसके कारण शेयर धारकों के करोड़ों डॉलर डूब गये थे, कंपनियों ने उत्पादन कार्य बंद कर दिया था लोग बेरोजगार हो रहे थे और कर्ज में दबे लोग आत्म हत्या कर रहे थे.

लेकिन यह सब किन कारणों से हुआ था और इसके पूरी दुनिया पर क्या प्रभाव पड़े थे इस सब की विवेचना इस लेख में आगे की जा रही है.

आर्थिक महामंदी की शुरुआत कब हुई थी?

वर्ष 1923 में अमरीका का शेयर बाज़ार चढ़ना शुरू हुआ और चढ़ता ही चला गया. लेकिन 1929 तक आते-आते इसमें अस्थिरता के संकेत आने लगे. अंततः 24 अक्टूबर 1929 को एक दिन मे क़रीब पाँच अरब डॉलर का सफ़ाया हो गया. अगले दिन भी बाज़ार का गिरना जारी रहा और 29 अक्टूबर 1929 को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और बुरी तरह गिरा और 14 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. इस तरह 29 अक्टूबर 1929 के दिन मंगलवार को 'ब्लैक ट्यूज़डे' की संज्ञा दी गयी. यह मंदी दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने तक अर्थात 1939 तक सर्वोत्तम बाजार समय के दौरान आगे बढ़ें चली थी.

आर्थिक महामंदी के क्या कारण थे?

सही मायने में 1930 की महामंदी का कोई एक कारण नहीं था लेकिन बाजार में मांग का ना होना, बैंको का विफल होना और शेयर बाज़ार की भारी गिरावट सर्वोत्तम बाजार समय के दौरान आगे बढ़ें को प्रमुख कारण माना जाता है जिसमें शेयर धारकों के 40 अरब डॉलरों का सफ़ाया हो गया था.

मेरे दृष्टिकोण से इस महामंदी के कारण प्रथम विश्व युद्ध के बाद अर्थात 1920 के दशक में अमेरिका में व्यापक पैमाने पर हुए ओवर प्रोडक्शन में छिपे हुए हैं. दरअसल प्रथम विश्व युद्ध के बाद लोगों में विकास की उम्मीद जगी जिससे अमेरिका में औद्योगिक क्रांति हुई, ग्रामीण लोग अच्छी नौकरी के लिए शहरों की ओर विस्थापित हुए कृषि और औद्योगिक उत्पादों का व्यापक पैमाने पर उत्पादन हुआ लेकिन उत्पादन की तुलना में इन सभी चीजों की मांग नहीं बढ़ी जिससे कंपनियों की सेल्स कम हुई, चीजों का स्टॉक बढ़ा, बैंकों का लोन चुकना बंद हुआ, बैंक कंगाल हुए और शेयर मार्किट गिरा और फिर हालात बिगड़ते ही गये.

मंदी आने की प्रक्रिया इस प्रकार है;

सबसे पहले बाजार में मांग कम हुई जिससे कंपनियों का स्टॉक बढ़ा, उत्पादन घटा, नौकरियां गयीं, लोगों ने बैंकों के कर्ज चुकाने बंद कर दिए जिससे बैंकों के पास लोन देने की शक्ति कम हो गयी, कर्ज मिलने बंद हो गए और जिन लोगों का धन बैंकों में जमा था उन्होंने भी उसे निकालना शुरू कर दिया जिसके संयुक्त प्रभाव से बैंकिंग ढांचा चरमरा गया. लगभग 9000 बैंकों का दिवाला निकल गया. बैंक में जमा राशि का बीमा न होने से लोगों की पूंजी ख़त्म हो गई. जो बैंक बचे रहे उन्होने पैसे का लेन-देन रोक दिया. लोगों ने अपने खर्च कम कर दिए फिर बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम होने लगी परिणाम स्वरुप कंपनियों ने उत्पादन कम कर दिया, जिससे कंपनियाँ बंद होने लगीं और जब उत्पादन नहीं होगा तो कोई कंपनी लोगों को नौकरी पर क्यों रखेगी फलतः नौकरियाँ जाने लगीं जिससे अमेरिका सहित पूरी दुनिया में महामंदी छा गयी थी.

great depression 1930

आर्थिक मंदी के प्रभाव;सर्वोत्तम बाजार समय के दौरान आगे बढ़ें

1. अमेरिका में बेरोजगारी 15 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 30 लाख हो गई. यूरोप में आर्थिक मंदी के कारण अमेरिका का यूरोपीय ऋण डूबने की स्थिति में आ गया. इस महामंदी का सबसे बड़ा नतीजा यह हुआ कि अमेरिका जैसे देशों को अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए एक बड़ा फंडा हाथ लग गया. अमेरिका सहित विभिन्न देशों में सैन्य प्रसार-प्रचार से न केवल नौकरियों के द्वार खुले, बल्कि हथियारों के उत्पादन से अर्थव्यवस्थाओं में भी जान आ गई.

आज के दिन भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था की धुरी उसकी हथियारों की बिक्री ही है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जमकर हथियार बेचे और विश्व में सुपर पॉवर के तौर पर उभरा.

2. 1930 की महामंदी का पूरी दुनिया पर असर हुआ. ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था कृषि और औद्योगिक उत्पादों के निर्यात पर निर्भर थी इसलिए उस पर सबसे अधिक असर पड़ा. कनाडा में औद्योगिक उत्पादन 58% कम हो गया और राष्ट्रीय आय 55% गिर गई थी.

3. 1931 ई. में आर्थिक मंदी के कारण ब्रिटेन को स्वर्णमान का परित्याग करना पड़ा. सरकार ने सोने का निर्यात बंद कर दिया. ब्रिटिश सरकार ने सस्ती मुद्रा दर को अपनाया जिससे ब्याज दर में कमी आयी इससे विभिन्न उद्योगों को सस्ती दर पर लोन मिला जिससे औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिला.

4. 1929 से 1932 के दौरान वैश्विक औद्योगिक उत्पादन की दर में 45 फीसदी की गिरावट आई थी.

5. इस मंदी के कारण 5 हजार से भी अधिक बैंक बंद हो गए थे.

इस प्रकार अमेरिका से शुरू हुई आर्थिक मंदी ने पूरे विश्व को प्रभावित किया था. उम्मीद है कि इस लेख को पढने के बाद आप समझ गए होंगे कि महामंदी किन कारणों से आई थी और इसने किन देशों के किस तरह से प्रभावित किया था.

नियमित समय पर कराएं गाड़ी की सर्विसिंग, अधिकतर लोग करते हैं ये बड़ी गलतियां

नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। बहुत से कम लोगों को सही ढंग से गाड़ी को कैसे सर्विसिंग करवाते हैं इसके बारे में पता है। अधितर लोग गाड़ी को सर्विस सेंटर पर खड़ी करके घर चले जाते हैं और सर्विस होने के बाद गाड़ी को लेने आते हैं। हालांकि, इससे कई बार अधूरी सर्विसिंग की शिकायतें आती हैं। गाड़ी की सर्विसिंग करवाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना है उसके बारे में इस खबर के माध्यम से आपको बचाने जा रहे हैं।

Car steering wheel shakes when speed increases, Know reasons

लोकल मकैनिक पर भरोसा करना

समय की बचत करने के चक्कर में बहुत से लोग लोकल मकैनिक से सर्विसिंग करवा लेते हैं। जहां कई बार वाहन मालिक को धोखा मिल जाता है। दरअसल, लोग मैकैनिक जो वाहन की सर्विस करते हैं उसको सर्विस सेंटर की तुलना में कम कीमत की मांग करते हैं। कम कीमत में गाड़ी की सर्विसिंग करने के चलते लोकल मकैनिक सर्विसिंग में कंजूसी करते हैं। यहां तक कि बिना ब्रांड के इंजन ऑयल भी डाल देते हैं, जिससे आगे चलकर गाड़ी में दिक्कत आती है।

Insurance Company Can Give Full Claim With One Car Key

खुद से इंजीनियर न बनें

बहुत से लोग पैसे बचाने के चक्कर में घर पर ही इंजन ऑयल चेंज करने लगते हैं। इससे साथ खुद से सर्विसिंग करने लगते हैं। इससे गाड़ी के कुछ पार्ट्स खुल तो जाते हैं, लेकिन बाद में वह सही ढंग से फिट नहीं हो पाता है, जिससे आगे चलकर गाड़ी में बड़ी खराबी आ जाती है।

गाड़ी की सर्विसिंग क्यों जरूरी

सही समय पर कार की सर्विस न होने से उसमें कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं। इसलिए हर किसी को वक्त रहते अपनी कार की सर्विस करवा लेनी चाहिये ताकि बड़ी दिक्कत आने की वजह से आपको अतिरिक्त जेब ढीली न करनी पड़े। कुछ नियमित अंतराल पर गाड़ी के फिल्टर, एयर प्रेशर, इंजन ऑयल को चेक करवाते रहना चाहिए।

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