जिले के बारे में

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है।

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से पश्चिमी चंपारण एवं पूर्वी चंपारण एक है। चंपारण का बाल्मिकीनगर देवी सीता की शरणस्थली होने से अति पवित्र है वहीं दूसरी ओर गाँधीजी का प्रथम सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अजातशत्रु के द्वारा वैशाली को जीते जाने के बाद यह मौर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश बाहरी बार का क्या अर्थ है? तथा गुप्त वंश के अधीन रहा। सन ७५० से ११५५ के बीच पाल वंश का चंपारण पर शासन रहा। इसके बाद मिथिला सहित समूचा चंपारण प्रदेश सिमराँव के राजा नरसिंहदेव के अधीन हो गया। बाद में सन १२१३ से १२२७ ईस्वी के बीच बंगाल के गयासुद्दीन एवाज ने नरसिंह देव को हराकर मुस्लिम शासन स्थापित की। मुसलमानों के अधीन होने पर तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा।
मुगल काल के बाद के चंपारण का इतिहास बेतिया राज का उदय एवं अस्त से जुड़ा है। बादशाह शाहजहाँ के समय उज्जैन सिंह और गज सिंह ने बेतिया राज की नींव डाली। मुगलों के कमजोर होने पर बेतिया राज महत्वपूर्ण बन गया और शानो-शौकत के लिए अच्छी ख्याति अर्जित की। १७६३ ईस्वी में यहाँ के राजा धुरुम सिंह के समय बेतिया राज अंग्रेजों के अधीन काम करने लगा। इसके बाहरी बार का क्या अर्थ है? अंतिम राजा हरेन्द्र किशोर सिंह के कोई पुत्र न होने से १८९७ में इसका नियंत्रण न्यायिक संरक्षण में चलने लगा जो अबतक कायम है। हरेन्द्र किशोर सिंह की दूसरी रानी जानकी कुँवर के अनुरोध पर १९१० में बेतिया महल की मरम्मत करायी गयी थी। बेतिया राज की शान का प्रतीक यह महल आज यह शहर के मध्य में इसके गौरव का प्रतीक बनकर खड़ा है।
उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय चंपारण के ही एक रैयत श्री राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गाँधी अप्रैल १९१७ में मोतिहारी आए और नील की खेती से त्रस्त किसानों को उनका अधिकार दिलाया। अंग्रेजों के समय १८६६ में चंपारण को स्वतंत्र इकाई बनाया था। प्रशासनिक सुविधा के लिए १९७२ में इसका विभाजन कर पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण बना दिए गया।

पश्चिमी चम्‍पारण के उत्तर में नेपाल तथा दक्षिण में गोपालगंज जिला स्थित है। इसके पूर्व में पूर्वी चंपारण है जबकि पश्चिम में इसकी सीमा उत्तर प्रदेश के पडरौना तथा देवरिया जिला से लगती है। जिले का क्षेत्रफल 5228 वर्ग किलोमीटर है जो बिहार के जिलों में प्रथम है। जिले की अंतरराष्ट्रीय सीमा बगहा-१, बगहा-२, गौनहा, मैनाटांड, रामनगर तथा सिकटा प्रखंड के ३५ किलोमीटर तक उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में नेपाल के साथ लगती है।

धरातलीय संरचना

हिमालय की तलहठी में बसे पश्चिमी चम्‍पारण की धरातलीय बनावट में कई अंतर स्पष्ट दिखाई देते हैं। सबसे बाहरी बार का क्या अर्थ है? उत्तरी हिस्सा सोमेश्वर एवं दून श्रेणी है जहाँ की मिट्टी में शैल-संरचना का अभाव है और सिंचाई वाले स्थान पर भूमि कृषियोग्य है। यह सोमेश्वर श्रेणी से सटा तराई क्षेत्र है जो थारू जनजाति का निवास स्थल है। हिमालय के गिरिपाद क्षेत्र से रिसकर भूमिगत हुए जल के कारण तराई क्षेत्र को यथेष्ट आर्द्रता उपलब्ध है इसलिए यहाँ दलदली मिट्टी का विस्तार है। तराई प्रदेश से हटने पर समतल और उपजाऊ क्षेत्र मिलता है जिसे सिकरहना नदी (छोटी गंडक) दो भागों में बाँटती है। उत्तरी भाग में भारी गठन वाली कंकरीली पुरानी जलोढ मिट्टी पाई जाती है जबकि दक्षिण हिस्सा चूनायुक्त अभिनव जलोढ मिट्टी से निर्मित है और गन्ने की खेती के लिए अघिक उपयुक्त है। उत्तरी भाग में हिमालय से उतरने वाली कई छोटी नदियाँ सिकरहना में मिलती है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत ऊँचा है लेकिन यहाँ बड़े-बड़े चौर भी मिलते है। सदावाही गंडक, सिकरहना एवं मसान के अलावे पंचानद, मनोर, भापसा, कपन आदि यहाँ की बरसाती नदियाँ है।

वनस्पति एवं वन्यजीवः

बिहार के कुल वन्य क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम चंपारण में है। बिहार का एकमात्र बाघ अभयारण्य ८८० वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है और नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से सटा है। बेतिया से ८० किलोमीटर तथा पटना से २९५ किलोमीटर दूर स्थित इस वन्य जीव अभयारण्य में संरक्षित बाघ के अलावे काला हिरण, साँभर, चीतल, भालू, भेड़िया, तेंदुआ, नीलगाय, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, अजगर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं। राजकीय चितवन नेशनल पार्क से कभी कभी एकसिंगी गैंडा और जंगली भैंसा भी आ जाते हैं। इस वनक्षेत्र में साल, सीसम, सेमल, सागवान, जामुन, महुआ, तून, खैर, बेंत आदि महत्वपूर्ण लकड़ियाँ पाई जाती है।

गंडक एवं सिकरहना और इसकी सहायक नदियों के मैदान में होने से पश्चिमी चम्‍पारण जिला की मिट्टी उपजाऊ है। यहाँ के लोगों के जीवन का मुख्‍य आधार कृषि और गृह उद्योग है। उत्तम कोटि के बासमती चावल तथा गन्ने के उत्पादन में जिले को ख्याति प्राप्त है। भदई एवं अगहनी धान के अलावे गेहूँ, मक्का, खेसारी, तिलहन भी यहाँ की प्रमुख फसलों में शामिल है। तिरहुत नहर, त्रिवेनी नहर तथा दोन नहर पश्चिमी चंपारण तथा आसपास के जिले में सिंचाई का प्रमुख साधन है।

जलवायु

अपने पड़ोसी जिलों की तुलना में पश्चिमी चंपारण की जलवायु शीतल एवं आर्द्र है। हिमालय से आनेवाली ठंडी हवाओं के कारण यहाँ सर्दी अधिक होती है। गर्मी में तापमान ४३० सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। जून के अंत में मॉनसूनी वर्षा आरंभ हो जाती है। तराई क्षेत्र में सालाना १४० मिमी से अधिक वर्षा होती है। उत्तरी भाग में होनेवाली तीव्र वर्षा कई बार आवागमन में अवरोध का कारण बनता है।

प्रशासनिक विभाजनः

अनुमंडलः 1. बेतिया 2. बगहा 3.नरकटियागंज
प्रखंडः गौनहा, चनपटिया, जोगापट्टी, ठकराहा, नरकटियागंज, नौतन, पिपरासी, बगहा-१, बगहा-२, बेतिया, बैरिया, भितहा, मधुबनी, मझौलिया, मैनाटांड, रामनगर, लौरिया, सिकटा
पंचायतों की संख्या: 315
गाँवों की संख्या: 1483

महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
राजकुमार शुक्ल
प्रजापति मिश्र
शेख गुलाब
केदार पाण्डेय
तारकेश्वर नाथ तिवारी
श्यामाकांत तिवारी
असित नाथ तिवारी
व्यापार एवं उद्योग
नेपाल से सड़क मार्ग द्वारा चावल, लकड़ी, मसाले का आयात होता है जबकि यहाँ से कपड़ा, पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। जिले तथा पड़ोस क नेपाल में वनों का विस्तार होने से लकड़ियों का व्यापार होता है। उत्तम किस्म की लकड़ियों के अलावे बेतिया के आसपास बेंत मिलते हैं जो फर्नीचर बनाने के काम आता है। बगहा, बेतिया, चनपटिया एवं नरकटियागंज बाहरी बार का क्या अर्थ है? व्यापार के अच्छे केंद्र है। जिले में कृषि आधारित उद्योग ही प्रमुख है। मझौलिया, बगहा, हरिनगर तथा नरकटियागंज में चीनी मिल हैं। कुटीर उद्योगों में रस्सी, चटाई तथा गुड़ बनाने का काम होता है।
शिक्षा एवं संस्कृति
प्राथमिक विद्यालय- १३४०
मध्य विद्यालय- २८४
उच्च विद्यालय- ६८
डिग्री महाविद्यालय- ३
औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र- १

बाहरी बार का क्या अर्थ है?

पौराणिक कथा के अनुसार, पानीपत महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित पांच शहरों (प्रस्थ) में से एक था इसका ऐतिहासिक नाम पांडुप्रसथ है। पानीपत भारतीय इतिहास में तीन प्रमुख लड़ाइयों का गवाह है। पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल 1526 को दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच लड़ा गया था। बाबर की सेना ने इब्राहिम के एक लाख से ज्यादा सैनिकों को हराया। इस प्रकार पानीपत की पहली लड़ाई ने भारत में बहलुल लोदी द्वारा स्थापित ‘लोदी वंश’ को समाप्त कर दिया।

पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य के बीच लड़ी गई, सम्राट हेम चन्द्र उत्तर भारत के राजा थे तथा हरियाणा के रेवाड़ी से सम्बन्ध रखते थे। हेम चन्द्र ने अकबर की सेना को हरा कर आगरा और दिल्ली के बड़े राज्यों पर कब्जा कर लिया था। इस राजा को विक्रमादित्य के रूप में भी जाना जाता है। यह राजा पंजाब से बंगाल तक 1553-1556 से अफगान विद्रोहियों के खिलाफ 22 युद्धों जीत चुका था और 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली में पुराना किला में अपना राज्याभिषेक था और उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई से पहले उत्तर भारत में ‘हिंदू राज’ की स्थापना की थी। हेम चंद्र की एक बाहरी बार का क्या अर्थ है? बड़ी सेना थी, और शुरूआत में उनकी सेना जीत रही थी, लेकिन अचानक हेमू की आंख में एक तीर मारा गया और उसने अपनी इंद्रियों को खो दिया। एक हाथी की पीठ पर अपने राजा को न देखकर उसकी सेना भाग गई। बाद में मुगलों द्वारा उस पर कब्जा कर लिया और उसका सिर काट दिया। उसके सिर को दिल्ली दरवाजा के लिए काबुल भेजा गया था और उसके धड़ को दिल्ली में पुराना किला के बाहर लटका दिया गया था। पानीपत की इस दूसरी लड़ाई ने उत्तर भारत में हेमू द्वारा स्थापित ‘हिंदू राज’ को कुछ समय के लिए समाप्त कर दिया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के तहत मराठों के बीच लड़ा गया था। यह लडाई अहमद शाह अब्दाली ने सदाशिवराव भाऊ को हराकर जीत ली थी। यह हार इतिहास मे मराठों की सबसे बुरी हार थी। इस युद्ध ने एक नई शक्ति को जन्म दिया जिसके बाद से भारत में अग्रेजों की विजय के रास्ते खोल दिये थे। प्रसिद्ध उर्दू शायार मौलाना हली का जन्म भी पानीपत में ही हुआ था।

District Hamirpur

हमीरपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट धाम मण्डल का एक हिस्सा है। हमीरपुर शहर जिला का मुख्यालय है। इसमें चार तहसील हमीरपुर, मौदाहा, राठ, सरीला और सात ब्लाक गोखण्ड, कुरारा, मौदाहा, मुस्करा , राठ, सरीला ,सुमेरपुर शामिल हैं।

Astro Tips: कहीं जाते समय शव यात्रा देखना शुभ है या अशुभ

significance of shav yatra

जब आप कहीं बाहर यात्रा पर जाते हैं तब कई बार आपको कुछ ऐसे संकेत मिलते हैं जिनके कुछ शुभ या अशुभ परिणाम हो सकते हैं। जैसे यदि यात्रा पर जाते समय या घर से बाहर निकलते समय अगर आपकी आंख फड़कने लगे तो ये आपके लिए कुछ अशुभ संकेत भी हो सकता है। ऐसे ही कई बार बाहर निकलते समय बिल्ली रास्ता काट जाए तब भी आपको इसके कुछ संकेत मिलते हैं।

जाने अंजाने कुछ ऐसी घटनाएं होने लगती हैं जो आपके बाहर जाते समय आपका काम पूरा होगा या नहीं इस बात की ओर इशारा करती हैं। एक ऐसी ही घटना है कहीं बाहर जाते समय शव यात्रा को देखना। आपमें से न जाने कितने लोगों के मन में ये सवाल आते होंगे कि कहीं बाहर जाते समय शव यात्रा को देखना शुभ होता है या नहीं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ.आरती दहिया से बात की, उन्होंने इसके फल के बारे में बताया जो आप भी जानें।

भगवत गीता में है ये बात

आरती जी बताती हैं कि भगवत गीता (भगवत गीता में लिखी बातें) के अनुसार जन्म और मृत्यु पूर्ण रुप से एक दूसरे पर आश्रित हैं। ये दोनों अटल परिस्थितियां हैं जिसे कभी भी टाला नहीं जा सकता है। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिसे टालना असंभव है। जिसने जन्म लिया है उसकी मौत सुनिश्चित है। जिसने भी जन्म लिया है उसे एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही पड़ेगा। इंसान हो, जानवर हो या कोई भी प्राणी कभी न कभी तो उसे मौत की नींद सोना ही है। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। यानी कि जिसकी भी मृत्यु हुई है वह लौटकर किसी दूसरे रूप में जरूर आएगा।

कहीं बाहर जाते समय शव यात्रा देखने का मतलब

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जब भी हम बाहर जाते समय किसी शव यात्रा को देखते हैं तो हम डर जाते हैं कि आज का दिन शुभ रहेगा या नही। वैसे ज्योतिष के अनुसार शव यात्रा को देखना शुभ होता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा कोई भी दृश्य देखने पर आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। रास्ते में दिखने वाली शव यात्रा को सभी लोग प्रणाम करते हैं तथा शिव का ध्यान करते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से मृत व्यक्ति प्रणाम करने वाले व्यक्ति के सभी कष्ट अपने साथ ले जाता है।

शवयात्रा देखना शुभ क्यों होता है

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के बाद व्यक्ति की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। इसलिए शवयात्रा देखना शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार किसी की अंतिम विदाई देखने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि शवयात्रा देखना सुखद एवं मंगलमय भविष्य का सूचक है। मान्यता यह भी है कि शव यात्रा को देखने से अधूरे काम पूरे होने की संभावनाएं बनने लगती हैं, दुखों का नाश और सुखी जीवन का आगाज़ होता है।

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कैसी शव यात्रा शुभ मानी जाती है

shav yatra dikhne ke prabhav

दरअसल रास्ते में शव यात्रा देखना शुभ है या अशुभ यह कई बातों पर निर्भर करता है। जैसे यदि रास्ते में शव के साथ ढोल नगाड़े बज रहे हों तो यह आपके लिए शुभ संकेत हो सकता है। ऐसा माना जाता है ऐसी यात्रा देखने से जिस भी काम के लिए आप निकल रहे हैं उसमें आपको सफलता जरूर मिलेगी। एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति किसी मृत व्यक्ति को कंधा देता है तो उस व्यक्ति को एक यज्ञ के बराबर का पुण्य मिलता है। शव यात्रा को देखकर शिव का ध्यान करने से माना जाता है कि मृत व्यक्ति को मुक्ति मिलती है साथ ही उस व्यक्ति की सभी परेशानियां दूर होती है।

इस तरह ज्योतिष की मानें तो रास्ते में शव यात्रा के दर्शन आपके जीवन के लिए मिले जुले प्रभाव लाते हैं, लेकिन ऐसी यात्रा देखकर मृत व्यक्ति को हाथ जोड़कर प्रणाम जरूर करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।

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