वित्तीय बाज़ार MCQ Quiz in हिन्दी - Objective Question with Answer for Financial Market - मुफ्त [PDF] डाउनलोड करें
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Latest Financial Market MCQ Objective Questions
वित्तीय बाज़ार Question 1:
निम्नलिखित में से कौन सा विभाग सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) से संबंधित नीतिगत मुद्दों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?
- वित्तीय खुफिया इकाई-भारत (FIU-IND)
- लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS)
- केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (CPGRAMS)
- वित्तीय सेवा विभाग (DFS)
- इनमे से कोई भी नहीं
Answer (Detailed Solution Below)
Financial Market Question 1 Detailed Solution
सही उत्तर वित्तीय सेवा विभाग (DFS) है।
वित्तीय बाजार और इसके प्रकार Key Points
- वित्तीय सेवा विभाग (DFS) मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) से संबंधित नीतिगत मुद्दों के लिए जिम्मेदार है।
- वित्तीय सेवा विभाग (DFS) निम्नलिखित से संबंधित मुद्दों के लिए जिम्मेदार है:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक,
- विकास वित्तीय संस्थान (नाबार्ड, NHB, एक्जिम, सिडबी आदि)
- कृषि ऋण,
- सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियां
- पेंशन सुधार
Important Points
- वित्तीय सेवा विभाग (DFS)
- यह वित्त मंत्रालय के पांच विभागों में वित्तीय बाजार और इसके प्रकार से एक है।
- यह जोखिम हस्तांतरण तंत्र के रूप में वित्तीय समावेशन, सामाजिक सुरक्षा और बीमा से संबंधित पहलों और सुधारों के लिए जिम्मेदार है।
- वह अर्थव्यवस्था/किसानों/आम आदमी के प्रमुख क्षेत्रों में ऋण प्रवाह को भी देखता है।
- वर्तमान में DFS द्वारा चलाई जा रही प्रमुख प्रमुख योजनाएं प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना, और प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधान मंत्री मुद्रा योजना (PMMY) आदि हैं।
Additional Information
रमेश सिंह टेस्ट: भारतीय वित्तीय बाजार
10 Questions MCQ Test Famous Books for UPSC CSE (Summary & Tests) in Hindi | रमेश सिंह टेस्ट: भारतीय वित्तीय बाजार
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निम्नलिखित कथनों पर विचार करें।
(i) व्यापार एक दर पर किया जाता है जिसे छूट दर के रूप में जाना जाता है जो बाजार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
(ii) मुद्रा बाजार में उधार को सहयोगकर्ताओं द्वारा समर्थित होना चाहिए।
(iii) पूंजी बाजार में, ब्याज दर के साथ-साथ छूट दर पर धन का कारोबार किया जा सकता है।
इनमें से वित्तीय बाजार और इसके प्रकार कौन सा कथन सही है / सही है?
- A. केवल 1 और 3
मुद्रा बाजार एक अर्थव्यवस्था का अल्पकालिक वित्तीय बाजार है। इस बाजार में, व्यक्तियों या समूहों (यानी, वित्तीय संस्थानों, बैंकों, सरकार, कंपनियों, आदि) के बीच धन का व्यापार होता है, जो या तो नकद-अधिशेष या नकद-दुर्लभ होते हैं।
व्यापार एक दर पर किया जाता है जिसे छूट दर के रूप में जाना जाता है जो बाजार द्वारा निर्धारित किया जाता है और दिन की ट्रेडिंग में नकदी की उपलब्धता और मांग के अनुसार निर्देशित होता है।
इस बाजार में उधार लेना कोलतार द्वारा समर्थित हो भी सकता है और नहीं भी।
भारतीय मुद्रा बाजार के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें।
(i) बाजार भारत में संगठित और असंगठित दोनों चैनलों में काम करता है।
(ii) लेनदेन बिचौलियों के माध्यम से या
(iii) धे व्यापारिक पक्षों के बीच हो सकता है।
इनमें से कौन सा कथन सही है / सही है?
केवल 1
केवल 2
दोनों 1 और 2
न तो 1 और न ही 2
बाजार भारत में 'संगठित और असंगठित' दोनों चैनलों में काम करता है। Ting व्यक्ति-से-व्यक्ति ’मोड से शुरू होकर onic टेलिफोनिक लेन-देन’ में परिवर्तित, यह अब इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी के युग में ऑनलाइन हो गया है। लेनदेन बिचौलियों (दलालों के रूप में जाना जाता है) या (c) धे व्यापारिक पक्षों के बीच हो सकता है।
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान किसे कहते हैं ? इसे कितने भागों में बाँटा जाता है ? वर्णन करें।
ऐसी वित्तीय संस्थाएं जो देश के लिए वित्तीय और साख नीतियों का निर्धारण एवं निर्देशन करती हैं तथा राष्ट्रीय स्तर पर वित्त प्रबंधन के कार्यों का संपादन करती हैं उन्हें हम राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ कहते है-
राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं को दो वित्तीय बाजार और इसके प्रकार भागों में बाँटा जाता है-(i) भारतीय मदा बाजार भारतीय मुद्रा बाजार ऐसा मौद्रिक बाजार है जहाँ उद्योग एव व्यवसाय के क्षेत्र के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय व्यवस्था एवं प्रबंधन किया जात है। भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र वित्तीय बाजार और इसके प्रकार के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किये जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ शामिल की जाती हैं।
(ii)भारतीय पंजी बाजार भारतीय पूंजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उपलब्ध करातः है। दीर्घकालीन पूँजी की मांग बड़े-बड़े उद्योग घराने एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के लिए होत है। इसका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है
भारतीय पंजी-(i) प्रतिभूति बाजार- इसके अन्तर्गत प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजा आते हैं। (ii) औद्योगिक बाजार। (iii) विकास वित्त संस्थान। (iv) गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियाँ।
भारतीय पूंजी बाजार मूलतः इन्हीं चार वित्तीय संस्थानों पर आधारित है जिसके चल राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे-सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण-संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बड़े-बड़े निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किये जाते वित्तीय बाजार और इसके प्रकार हैं। फलस्वरूप राष्ट्र
के निर्माण में इन वित्तीय संस्थानों का काफी योगदान होता है। भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई में एक सुसंगठित बाजार है जिसके माध्यम से औद्योगिक क्षेत्रों के लिए वित्त की व्यवस्था होती है। भारत को यह पूंजी बाजार इतना दृढ़ है कि वर्तमान में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का जो दौ चल रहा है उसमें विश्व के अन्य देशों की अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुआ है। मुंबई के जिस जगह पर इस पूंजी बाजार का प्रधान क्षेत्र है उसे दलाल स्ट्रीट कहा जाता है।वित्तीय बाजार क्या है ? Financial Market meaning in hindi .
बाजार किसी अर्थव्यवस्था का वह अंग है, वचनातिरक (fund surplus) पक्ष और अवाभाव (tund scarce) पक्ष के बीच धन का (transaction) होता है। यह लेन-देन व्याज (intrest)अथवा लाभांश (dividend) के आधार पर सम्पन होता है।
Money Market kya hai ?
1. इस भौतिक रूप से विद्यमान बाजार में धन का लघु अवधि (short term) या दीर्घ अवधि (Long term) के लिए हो सकता है। प्रत्येक ऐसा लेन देन जिसकी समय सीमा 1 दिन से 364 दिनों की हो सकती है, लघु अवधि का वित्त बाजार है। इसी बजार को मुद्रा बाजार (Money Market) कहा जाता है।
इसी प्रकार एक वर्ष या इससे अधिक अवधि के इस तरह केे धन के लेन-देन को दीर्घावधिक वित्त बाजार का अंग मानते हैं जो पूँजी बाजार (वित्तीय बाजार और इसके प्रकार Capital Market) कहलाता हैं।
* प्रत्येक वित्त बाजार के दो अंग होते हैं- मुद्रा बाजार और पूँजी बाजार- पहला लघु अवधि का वित्त बाजार और दूसरा दीर्घ अवधि का वित्त बाजार है।
* संगठित भारतीय मुद्रा बाजार में वर्तमान में विभिन्न के लिए निम्न संघटक (Instruments) कार्य कर रहे हैं :
बाजार :: वर्ष 1992 में प्रारम्भ हुआ यह बाजार अंतर बैंक (Inter-bank) संघटक है। यह एक अति अल्प अवधि का बाजार है, जिसमें एक दिवसीय धन का लेन-देन होता है। इस बाज़ार में अधिकतम 14 दिनों तक भी उधार लिया जाता है। बैंकों के मध्य कॉल मुद्रा के लेन-देन को अंतर बैंक काल मुद्रा बाजार कहते हैं। अंतर बैंक कॉल मुद्रा बाजार में प्रचलित दरें
: वर्ष 1986 में प्रारम्भ किए गए इस संघटक का उपयोग सरकार करती है। ट्रेजरी बिल द्वारा केन्द्र सरकार अल्पकालिक ऋण प्राप्त करती हैं। वर्तमान में 91, 182, 364 दिवसीय ट्रेजरी बिल प्रचलित है।
* ट्रेजरी बिल्स रिजर्व बैंक द्वारा सरकार के लिए निर्गमित की जाने वाली अत्यल्प अवधि की प्रतिभूतियों होती हैं, जिसके माध्यम से सरकार ऋण लेती है। यह दो प्रकार की होती है प्रथम नीलामी ट्रेजरी बिल्स (जो रिजर्व
बैंक द्वारा 91, 182 एवं 364 दिनों के लिए निर्गमित की जाती है) तथा दूसरी-तदर्थ (एडहॉक) ट्रेजरी बिल्स (यह अत्यन्त अस्थाई प्रतिभूति है, जो रिजर्व बैंक के नाम से ही निर्गमित होती थी। 1997-98 में इसे बंद कर दिया गया)।
वर्ष 1990 में संगठित इस संघटक का प्रयोग वित संस्थानों, गैर बैंकिंग वित्त कंपनियों, मर्चेन्ट बैकों, सहकारी बैंकों एवं म्यूचुअल फंड कंपनियों द्वारा किया जाता है।
: वर्ष 1989 में प्रारम्भ इस संघटक का उपयोग बैंकों द्वारा अपनी तात्कालिक धन की कमी को पूरा करने में किया जाता है।
: वर्ष 1990 में संगठित इस संघटक का उपयोग गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों एवं अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों के द्वारा 'प्रोमिसरी नोट्स' (Promissory वित्तीय बाजार और इसके प्रकार Notes) के रूप में किया जाता है।
इसका प्रचलित नाम सिर्फ म्यूचुअल फंड है। इसके माध्यम से शेयर एवं प्रतिभूति वित्तीय बाजार और इसके प्रकार बाजार के संबंध में विशेष जानकारी न रखने के बावजूद भी आम आदमी को इस क्षेत्र में निवेश करके लाभ कमाने का अवसर प्राप्त होता है। इसकी स्थापना 1992 में हुई थी।
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति तथा उसको तरलता की ताप के लिए इसके द्वारा मुद्रा के चार संघटकों (Components) को M1. M2. M3, तथा M4, नाम दिया गया था, जिनकी आंतरिक बनावट (Internal composition) निम्न प्रकार है
Components of Money
• M1 = जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के + बैंकों की मांग जमा (बचत खाता + चालू खाता) + RBI के पास अन्य जमाएँ
अर्थात् M4. द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सभी प्रकृति की तरलता (liquidity) वाली मुद्राओं की माप हो जाती है।
जैसे-जैसे हम M1, से M4 की तरफ बढ़ते हैं मुद्रा की तरलता (liquidity) घटती है। अर्थात् इनमें सर्वाधिक तरलता(liquidity) M1 की है तथा न्यूनतम तरलता M4 की है।
* तरलता (liquidity) का तात्पर्य है उनकी लघु एवं दीर्घ अवधि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षमता। जहाँ किसी मुद्रा की उच्च तरलता (liquidity) उसे लघु अवधि की धन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बेहतर बनाता है वहीं उनके द्वारा धन की दीर्घावधिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं की जा सकती यह भी पता चलता है।
* M1 जनता को उपलब्ध मुद्रा की मात्रा है। इसे संकीर्ण मुद्रा (Narrow Money) भी कहते हैं, क्योंकि इसकी तरलता सबसे अधिक है और निवेश में इसकी भूमिका नहीं के बराबर है।
* M3 को व्यापक मुद्रा या सुलभ मुद्रा (Broad Money) कहा जाता है। साख नियंत्रण में यह उपयोगी है, क्योंकि इसका संबंध बैंकों की कुल जमाराशियों से है।
* भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घावधिक निवेश आवश्यकताएँ (जिस पर आर्थिक वृद्धि टिकी होती है) वास्तव में M3 से पूरी होती हैं।
सस्ती मुद्रा नीति से अभिप्राय ऐसी मौद्रिक नीति से है। जिसके अन्तर्गत उद्योगों, व्यवसायों व उपभोक्ताओं को कम ब्याज दर व आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध होते हैं। उद्योगों व व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु प्राय: इस नीति का उपयोग किया जाता है। किन्तु सस्ती मुद्रा नीति से मुद्रा स्फीति में वृद्धि वित्तीय बाजार और इसके प्रकार होती है।
महँगी मुद्रा नीति का उपयोग साख संकुचन के लिए किया जाता है। इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। इस नीति के अन्तर्गत ब्याज दर में वृद्धि कर दी जाती है।
वित्तीय बाजार और इसके प्रकार
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