नोट: मुंबई और कलकत्ता मिंट की स्थापना अंग्रजों ने 1829 में की थी जबकि हैदराबाद मिंट की स्थापना हैदराबाद के निजाम ने 1903 में की थी जिसे 1950 में भारत सरकार ने अपने कब्जे ले लिया था और इसने 1953 से सिक्के भारत सरकार के लिए ढालने शुरू किये थे. सबसे अंतिम मिंट की स्थापना भारत सरकार ने 1986 में उत्तर प्रदेश के नॉएडा में स्थापित की थी और यहाँ पर 1986 से सिक्के ढाले जा रहे हैं.
भारत में सिक्कों का आकार क्यों घटता जा रहा है?
देश में करेंसी नोटों को छापने के कार्य रिज़र्व बैंक के द्वारा किया जाता है जबकि सिक्कों को बनाने का काम वित्त मंत्रालय के द्वारा किया जाता है. भारत सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू स्थिर सिक्कों के प्रकार उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे क्योंकि यदि ऐसा नही होगा तो लोग सिक्के को पिघलाकर उसकी धातु को बाजार में बेच देंगे जिसके कारण भारत के बाजर से सिक्के गायब हो जायेंगे. सिक्कों की मेटलिक वैल्यू घटाने के लिए सरकार उनका आकार छोटा कर रही है.
ज्ञातव्य है कि वित्त मंत्रलाय देश के सिक्के बनाने काम रिज़र्व बैंक से नहीं करवाता है लेकिन देश में नोटों और सिक्कों को पूरी आर्थव्यवस्था में फ़ैलाने का काम रिज़र्व बैंक के द्वारा ही किया जाता है.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत की सबसे बड़ी मौद्रिक संस्था है. RBI देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती को नियंत्रित करता है. यदि देश में मुद्रा की पूर्ती अधिक है तो यह पॉलिसी रेट जैसे नकद आरक्षी अनुपात (CRR),बैंक रेट और रेपो रेट में बढ़ोत्तरी करके मुद्रा को अर्थव्यवस्था से बाहर निकाल लेता है और यदि पूर्ती बढ़ानी होती है तो मुख्य पॉलिसी रेट में कमी कर देता है.
भारत में एक रुपये के नोट को छोड़कर सभी नोटों की छपाई का काम RBI ही करता है लेकिन 1 रुपये के नोट और सभी सिक्कों को ढालने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के ऊपर है. हालाँकि वित्त मंत्रालय एक रूपए के नोट और सिक्कों को अर्थव्यवस्था में RBI में माध्यम से ही बांटता है.
भारत में सिक्के कहाँ बनाये जाते हैं?
भारत में चार जगहों पर सिक्के ढाले जाते हैं:
1. मुंबई
2. कोलकाता
3. हैदराबाद
4. नोएडा
नोट: मुंबई और कलकत्ता मिंट की स्थापना अंग्रजों ने 1829 में की थी जबकि हैदराबाद मिंट की स्थापना हैदराबाद के निजाम ने 1903 में की थी जिसे 1950 में भारत सरकार ने अपने कब्जे ले लिया था और इसने 1953 से सिक्के भारत सरकार के लिए ढालने शुरू किये थे. सबसे अंतिम मिंट की स्थापना भारत सरकार ने 1986 में उत्तर प्रदेश के नॉएडा में स्थापित की थी और यहाँ पर 1986 से सिक्के ढाले जा रहे हैं.
यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि ऊपर दी गयी 3 मिंट अपने ढाले गए सिक्कों पर एक निशान बनाते हैं जिसकी मदद से आप यह जान सकते हैं कि कौन सा सिक्का किस मिंट में ढाला गया है.
निशान से पता चलता है कहां ढला है सिक्का ?
हर सिक्के पर एक निशान छपा होता है जिसको देखकर आपको पता चल जाएगा कि यह किस मिंट का है. यदि सिक्के में छपी तारीख के नीचे एक स्टार नजर आ रहा है तो ये चिह्न हैदराबाद मिंट का चिह्न है. नोएडा मिंट के सिक्कों पर जहां छपाई का वर्ष अंकित किया गया है उसके ठीक नीचे छोटा और ठोस डॉट होता है. मुंबई में ढाले गए सिक्के पर डायमंड का निशान होता है जबकि कलकत्ता मिंट किसी भी निशान को नही बनाती है.
अब सबसे बड़ा प्रश्न लोगों के दिमाग में यह आता है कि आखिर वित्त मंत्रालय सिक्कों का आकार साल दर साल घटाता क्यों जा रहा है और सिक्कों में इस्तेमाल होने वाली धातु भी बदल क्यों रही है.
भारत की करेंसी नोटों का इतिहास और उसका विकास
जब भारत सरकार के पास ज्यादा सिक्के ढालने की मशीनरी नही थी तो कई विदेशी टकसालों में भारत के सिक्के ढलवाए गए और फिर उनका आयात भारत में किया गया था.
भारत ने 1857-58, 1943, 1985, 1997-2002 के दौरान सिक्कों का आयात किया था. इस समय तक सिक्के ताम्र निकल (Cupro Nickel) के बनाये जाते थे. लेकिन 2002 के बाद जब ताम्र निकल की कीमतों में वृद्धि हो गयी तो सिक्कों को बनाने की लागत भी बढ़ गई इस कारण सरकार को सिक्के बनाने के लिए "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" का प्रयोग करना पड़ा और वर्तमान में सिक्के इसी स्टील से बनाये जा रहे हैं. "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" में 17% क्रोमियम और 83% लोहा होता है.
सिक्कों का आकार छोटा क्यों किया जा रहा है?
दरअसल किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होतीं हैं; जिनमे एक को कहा जाता है सिक्के की “फेस वैल्यू” और दूसरी वैल्यू होती है उसकी “मेटलिक वैल्यू”.
सिक्के की फेस वैल्यू: इस वैल्यू से मतलब उस सिक्के पर “जितने रुपये लिखा” होता है, वही उसकी फेस वैल्यू कहलाती है; जैसे अगर किसी सिक्के पर 1 रुपया लिखा होता तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपया ही होती है.
सिक्के की मेटलिक वैल्यू: इसका मतलब है सिक्का जिस धातु से बना है अगर उस सिक्के को पिघला दिया जाये तो उस धातु की मार्किट वैल्यू कितनी होगी.
“अब आप यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार सिक्कों को छोटा क्यों कर रही है.”
अगर मान लो कि किसी सुनार/व्यक्ति के पास 1 रुपये का ऐसा सिक्का है जिसे यदि स्थिर सिक्कों के प्रकार पिघला दिया जाये और उस धातु को बाजार में 2 रुपये में बेच दिया जाये तो उसको 1रुपये का फायदा हो जायेगा.
अब यदि सभी लोग सिक्का पिघलाकर बाजार में बेच देंगे स्थिर सिक्कों के प्रकार तो सिक्के बाजार से गायब हो जायेंगे जो कि सरकार और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बहुत ही घातक स्थिति होगी. यही कारण है कि सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे ताकि लोग सिक्के को पिघलाने की कोशिश ना करें क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें घाटा उठाना पड़ेगा. जै
से अगर किसी ने 2 रुपये का सिक्का (फेस वैल्यू) पिघला दिया और उस धातु को बाजार में बेचने पर उसे सिर्फ 1 रूपया (मेटलिक वैल्यू) मिला तो उसको 1 रुपये का घाटा हो जायेगा.
अतः बाजार में सिक्कों की उपलब्धता बनाये रखने के लिए सरकार हर साल सिक्के का आकार घटाती रहती है और उनको बनाने में सस्ती धातु का प्रयोग करती है.
नोट: भारत में सुनारों (Goldsmith)ने पुराने सिक्कों को पिघलाकर चांदी के गहनों में खूब इस्तेमाल किया था इसलिए आज ये सिक्के बाजार में नजर नही आते हैं. ख़बरों में ये बात भी सामने आई है कि भारत के पुराने सिक्के बांग्लादेश में तस्करी किये जाते हैं क्योंकि इस धातु से वहां पर “ब्लेड” बनाये जाते हैं.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि भारत में सिक्कों के आकार में कमी और धातु में परिवर्तन क्यों किया जा रहा है. उम्मीद है कि आप इसके पीछे पीछे तर्क को समझ गए होंगे.
सिक्कों को बनाने में होता है इस मेटल का इस्तेमाल, भारत में इतनी जगह पर बनाए जाते हैं सिक्के
RBI के मुताबिक भारत में केवल चार जगहों पर ही सिक्के बनाए जाते हैं. ये जगहें मुंबई, अलीपोर (कोलकाता), हैदराबाद और नोएडा हैं. आप सिक्कों पर बने एक चिन्ह को देखकर भी पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का कहां बना है.
कई लोगों को सिक्कों का कलेक्शन करने का शौक होता है और कई लोग के पास आपको बहुत से सिक्के भी मिल जाएंगे. मगर क्या कभी आपने सोचा है कि सिक्कों को कैसे बनाया जाता है और भारत में ये सिक्के कहां पर बनते हैं? अगर नहीं पता तो हम आपको बताते हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की वेबसाइट के मुताबिक भारत में सिक्कों को चार जगह पर ढाला या Mint किया जाता है.
भारत में कहां पर बनते हैं सिक्के?
RBI के मुताबिक भारत में केवल चार जगहों पर ही सिक्के बनाए जाते हैं. ये जगहें मुंबई, अलीपोर (कोलकाता), हैदराबाद और नोएडा हैं. आप सिक्कों पर बने एक चिन्ह को देखकर भी पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का कहां बना है. हर सिक्के पर उसके मिंट किए जाने का साल लिखा होता है. सिक्कों पर लिखे इसी साल के नीचे यह चिन्ह बना होता है, जिसकी मदद से आप पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का किस जगह पर मिंट किया गया है.
अगर किसी सिक्के पर एक सितारा बना है तो इसका मतलब है कि इसे हैदराबाद में मिंट किया गया है. नोएडा में मिंट होने वाले सिक्के पर एक ‘सॉलिड डॉट’ होता है. मुंबई में मिंट किए गए सिक्कों पर ‘डायमंड’ का आकार होता है. कोलकाता में मिंट किए गए सिक्कों पर ऐसा कोई चिन्ह नहीं होता है.
भारत में क्वाइनेज एक्ट 1906 के तहत सिक्कों को मिंट किया जाता है. इस एक्ट के तहत ही भारत सरकार की तरफ से सिक्कों के उत्पादन और उसकी सप्लाई की जिम्मेदारी आरबीआई को दी गई है. आरबीआई इस मकसद के लिए साल भर का लक्ष्य तय करती है और भारत सरकार प्रोडक्शन का प्रोग्राम बनाती है.
वेबसाइट कोरा के भारत सरकार धातुओं के मूल्य के आधार पर समय-समय पर विभिन्न धातुओं को उपयोग में लाती है. फिलहाल अधिकांश सिक्कों के निर्माण के लिए फेरिटिक स्टेनलेस स्टील (17% क्रोमियम और 83% आयरन) का उपयोग किया जा रहा है.
सिक्कों की साइज क्यों छोटी होती जाती है?
दरअसल, किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होती है. एक ‘फेस वैल्यू’ और दूसरी ‘मेटैलिक वैल्यू’. फेस वैल्यू का मतलब है कि सिक्कों पर जो वैल्यू लिखी है. मतलब है अगर कोई सिक्का 1 रुपये का है तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपये ही होगी. इसी प्रकार 2 रुपये सिक्के की वैल्यू 2 रुपये और 5 रुपये के सिक्के की वैल्यू 5 रुपये है.
मेटैलिक वैल्यू का मतलब है कि उस सिक्के को बनाने में कितना खर्च किया गया है. मान लीजिए कि अगर किसी सिक्के को पिघलाया जाता है उसके प्राप्त मेटल को 5 रुपये में बेचा जाता है तो उसकी मेटैलिक वैल्यू 5 रुपये होगी. अब इसे एक उदहारण की मदद से समझते हैं.
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति एक रुपये के सिक्कों को पिघलाकर 2 रुपये में बेच रहा है, तो उन्हें इस एक रुपये के सिक्के पर 1 रुपये का अतिरिक्त फायदा मिल रहा है. इस प्रकार इस व्यक्ति को 1 रुपये का नुकसान तो हुआ, लेकिन बदले में उन्हें 2 रुपये का फायदा भी हुआ.
सिक्कों की होती है मैटेलिक वैल्यू
ऐसे में यह भी हो सकता है कि मेटैलिक वैल्यू का फायदा उठाने के लिए लोग सभी सिक्कों को पिघलाकर मुनाफा कमा लें. एक ऐसा भी समय आ सकता है, जब बाजार से सभी सिक्के गायब भी हो सकते है. ऐसी स्थिति में सरकार और अर्थव्यवस्था को लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी. यही कारण है कि सिक्कों के मेटैलिक वैल्यू को उसके फेस वैल्यू से कम रखा जाता है. इससे लोगों के पास सिक्के पिघलाकर मुनाफा कमाने का मौका न मिले. इसीलिए सरकार हर साल महंगाई के हिसाब से सिक्कों की साइज और वजन कम करती रहती है.
RBI पर होती है जिम्मेदारी
भारत में करेंसी नोट छापने और अर्थव्यवस्था में सर्कुलेट करने की जिम्मेदारी भारतीय रिज़र्व बैंक के पास होती है. आरबीआई ही अर्थव्यवस्था में करेंसी को रेगुलेट करता है. अगर बाजार में ज्यादा पैसा है तो आरबीआई मौद्रिक नीति के जरिए उसे कम करता है. वहीं, अगर बाजार में कम पैसा है तो उसे आरबीआई की मौद्रिक नीति के तहत ही बढ़ाया भी जाता है. हालांकि, 1 रुपये के नोट छापने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के पास होती है. इसपर वित्त सचिव का सिग्नेचर होता है. हालांकि, आरबीआई के जरिए ही वित्त मंत्रालय अर्थव्यवस्था में 1 रुपये के स्थिर सिक्कों के प्रकार नोट व सिक्के सर्कुलेट करता है.
भारत में सिक्कों का आकार क्यों घटता जा रहा है?
देश में करेंसी नोटों को छापने के कार्य रिज़र्व बैंक के द्वारा किया जाता है जबकि सिक्कों को बनाने का काम वित्त मंत्रालय के द्वारा किया जाता है. भारत सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे क्योंकि यदि ऐसा नही होगा तो लोग सिक्के को पिघलाकर उसकी धातु को बाजार में बेच देंगे जिसके कारण भारत के बाजर से सिक्के गायब हो जायेंगे. सिक्कों की मेटलिक वैल्यू घटाने के लिए सरकार उनका आकार छोटा कर रही है.
ज्ञातव्य है कि वित्त मंत्रलाय देश के सिक्के बनाने काम रिज़र्व बैंक से नहीं करवाता है लेकिन देश में नोटों और सिक्कों को पूरी आर्थव्यवस्था में फ़ैलाने का काम रिज़र्व बैंक के द्वारा ही किया जाता है.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भारत की सबसे बड़ी मौद्रिक संस्था है. RBI देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती को नियंत्रित करता है. यदि देश में मुद्रा की पूर्ती अधिक है तो यह पॉलिसी रेट जैसे नकद आरक्षी अनुपात (CRR),बैंक रेट और रेपो रेट में बढ़ोत्तरी करके मुद्रा को अर्थव्यवस्था से बाहर निकाल लेता है और यदि पूर्ती बढ़ानी होती है तो मुख्य पॉलिसी रेट में कमी कर देता है.
भारत में एक रुपये के नोट को छोड़कर सभी नोटों की छपाई का काम RBI ही करता है लेकिन 1 रुपये के नोट और सभी सिक्कों को ढालने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के ऊपर है. हालाँकि वित्त मंत्रालय एक रूपए के नोट और सिक्कों को अर्थव्यवस्था में RBI में माध्यम से ही बांटता है.
भारत में सिक्के कहाँ बनाये जाते हैं?
भारत में चार जगहों पर सिक्के ढाले जाते हैं:
1. मुंबई
2. कोलकाता
3. हैदराबाद
4. नोएडा
नोट: मुंबई और कलकत्ता मिंट की स्थापना अंग्रजों ने 1829 में की थी जबकि हैदराबाद मिंट की स्थापना हैदराबाद के निजाम ने 1903 में की थी जिसे 1950 में भारत सरकार ने अपने कब्जे ले लिया था और इसने 1953 से सिक्के भारत सरकार के लिए ढालने शुरू किये थे. सबसे अंतिम मिंट की स्थापना भारत सरकार ने 1986 में उत्तर प्रदेश के नॉएडा में स्थापित की थी और यहाँ पर 1986 से सिक्के ढाले जा रहे हैं.
यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि ऊपर दी गयी 3 मिंट अपने ढाले गए सिक्कों पर एक निशान बनाते हैं जिसकी मदद से आप यह जान सकते हैं कि कौन सा सिक्का किस मिंट में ढाला गया है.
निशान से पता चलता है कहां ढला है सिक्का ?
हर सिक्के पर एक निशान छपा होता है जिसको देखकर आपको पता चल जाएगा कि यह किस मिंट का है. यदि सिक्के में छपी तारीख के नीचे एक स्टार नजर आ रहा है तो ये चिह्न हैदराबाद मिंट का चिह्न है. नोएडा मिंट के सिक्कों पर जहां छपाई का वर्ष अंकित किया गया है उसके ठीक नीचे छोटा और ठोस डॉट होता है. मुंबई में ढाले गए सिक्के पर डायमंड का निशान होता है जबकि कलकत्ता मिंट किसी भी निशान को नही बनाती है.
अब सबसे बड़ा प्रश्न लोगों के दिमाग में यह आता है कि आखिर वित्त मंत्रालय सिक्कों का आकार साल दर साल घटाता क्यों जा रहा है और सिक्कों में इस्तेमाल होने वाली धातु भी बदल क्यों रही है.
भारत की करेंसी नोटों का इतिहास और उसका विकास
जब भारत सरकार के पास ज्यादा सिक्के ढालने की मशीनरी नही थी तो कई विदेशी टकसालों में भारत के सिक्के ढलवाए गए और फिर उनका आयात भारत में किया गया था.
भारत ने 1857-58, 1943, 1985, 1997-2002 के दौरान सिक्कों का आयात किया था. इस समय तक सिक्के ताम्र निकल (Cupro Nickel) के बनाये जाते थे. लेकिन 2002 के बाद जब ताम्र निकल की कीमतों में वृद्धि हो गयी तो सिक्कों को बनाने की लागत भी बढ़ गई इस कारण सरकार को सिक्के बनाने के लिए "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" का प्रयोग करना पड़ा और वर्तमान में सिक्के इसी स्टील से बनाये जा रहे हैं. "फेरिटिक स्टेनलेस स्टील" में 17% क्रोमियम और 83% लोहा होता है.
सिक्कों का आकार छोटा क्यों किया जा रहा है?
दरअसल किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होतीं हैं; जिनमे एक को कहा जाता है सिक्के की “फेस वैल्यू” और दूसरी वैल्यू होती है उसकी “मेटलिक वैल्यू”.
सिक्के की फेस वैल्यू: इस वैल्यू से मतलब उस सिक्के पर “जितने रुपये लिखा” होता है, वही उसकी फेस वैल्यू कहलाती है; जैसे अगर किसी सिक्के पर 1 रुपया लिखा होता तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपया ही होती है.
सिक्के की मेटलिक वैल्यू: इसका मतलब है सिक्का जिस धातु से बना है अगर उस सिक्के को पिघला दिया जाये तो उस धातु की मार्किट वैल्यू कितनी होगी.
“अब आप यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि सरकार सिक्कों को छोटा क्यों कर रही है.”
अगर मान लो कि किसी सुनार/व्यक्ति के पास 1 रुपये का ऐसा सिक्का है जिसे यदि पिघला दिया जाये और उस धातु को बाजार में 2 रुपये में बेच दिया जाये तो उसको 1रुपये का फायदा हो जायेगा.
अब यदि सभी लोग सिक्का पिघलाकर बाजार में बेच देंगे तो सिक्के बाजार से गायब हो जायेंगे जो कि सरकार और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बहुत ही घातक स्थिति होगी. यही कारण है कि सरकार कोशिश करती है कि किसी भी सिक्के की मेटलिक वैल्यू उसकी फेस वैल्यू से कम ही रहे ताकि लोग सिक्के को पिघलाने की कोशिश ना करें क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें घाटा उठाना पड़ेगा. जै
से अगर किसी ने 2 रुपये का सिक्का (फेस वैल्यू) पिघला दिया और उस धातु को बाजार में बेचने पर उसे सिर्फ 1 रूपया (मेटलिक वैल्यू) मिला तो उसको 1 रुपये का घाटा हो जायेगा.
अतः बाजार में सिक्कों की उपलब्धता बनाये रखने के लिए सरकार हर साल सिक्के का आकार घटाती रहती है और उनको बनाने में सस्ती धातु का प्रयोग करती है.
नोट: भारत में सुनारों (Goldsmith)ने पुराने सिक्कों को पिघलाकर चांदी के गहनों में खूब इस्तेमाल किया था इसलिए आज ये सिक्के बाजार में नजर नही आते हैं. ख़बरों में ये बात भी सामने आई है कि भारत के पुराने सिक्के बांग्लादेश में तस्करी किये जाते हैं क्योंकि इस धातु से वहां पर “ब्लेड” बनाये जाते हैं.
इस प्रकार आपने पढ़ा कि भारत में सिक्कों के आकार में कमी और धातु में परिवर्तन क्यों किया जा रहा है. उम्मीद है कि आप इसके पीछे पीछे तर्क को समझ गए होंगे.
'सिक्कों से उस कालखण्ड की महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं'
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृतियां रजिष्ट्रीकरण अधिकारी डॉ. ओमप्रकाश लाल श्रीवास्तव का मानना है कि सिक्के प्राचीन इतिहास के निर्माण में एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्रोत होते हैं।
प्रतीकात्मक तस्वीर
उन्होंने बताया कि प्रारंभ में सिक्के लेख विहीन होते थे किंतु, बाद में उन पर लेख लिखे जाने लगे। इससे पता चलता है कि किस शासक, नगर, निगम, अथवा व्यापारिक श्रेणी के द्वारा जारी किए गए हैं। सिक्कों पर प्राप्त होने वाले लेखों से तत्कालीन भाषा और लिपि की जानकारी प्राप्त होती है। इससे लिपि के विकास का भी अध्ययन किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, 'विदिशा, कौशाम्बी माहिष्मती, त्रिपुरी और एरच आदि प्राचीन नगरों द्वारा सिक्के जारी किए गए थे जिससे उनके व्यापारिक महत्व का पता चलता है। इसी प्रकार कनिष्क के सिक्कों पर भी चतुर्भुजी शिव के अतिरिक्त सूर्य, चंद्रमा एवं बुद्ध के अंकन के साथ ग्रीक लिपि में ओयसो, मीरो, माओ एवं बोड्डो लेख से इन धर्मों के प्रति उसकी भावना का पता चलता है।'
श्रीवास्तव ने बताया कि गुप्तकाल में चंद्रगुप्त कुमारदेवी के सिक्कों पर उल्लिखित लिच्छवयः से गुप्तों के राजनयिक विकास में लिच्छवियों के योगदान का संकेत प्राप्त होता है।
उन्होंने बताया, 'सिक्कों के प्राप्तिस्थल के आधार पर भी शासक के स्थान का निर्धारण किया जाता है, किंतु इसमें काफी सतर्कता की आवश्यकता पड़ती है। कौशाम्बी से प्राप्त रुद्रदेव के सिक्के के आधार पर समुद्रगुप्त के इलाहाबाद प्रस्तर अभिलेख में वर्णित रुद्रदेव की पहचान करके उसे कौशाम्बी का शासक मान लिया गया था, किंतु उस सिक्के की धातु एवं तकनीकी कौशाम्बी की न होकर हरियाणा-पंजाब की है। अतः रुद्रदेव हरियाणा-पंजाब का शासक ज्ञात होता है।'
इसी प्रकार वृन्दावन में द्वादिशादित्य टीला एवं मौरा से प्राप्त इष्टकाभिलेख में उल्लिखित गोमित्र की पहचान स्थिर सिक्कों के प्रकार मथुरा से प्राप्त सिक्के वाले गोमित्र से की जा सकती है। इस प्रकार सिक्कों से नई जानकारी तो प्राप्त होती ही है। साथ ही अन्य स्रोतों से ज्ञात तथ्यों की पुष्टि भी होती है।
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