FM: रुपए की वैल्यू में 10% की गिरावट ज्यादा चिंताजनक बात नहीं है. इस बात के बावजूद की अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से अमेरिका की तरफ पैसे का फ्लो ज्यादा बढ़ रहा है और डॉलर मजबूत हो रहा है.
डॉलर के मुकाबले कैसे तय होता है रुपये का रेट, यहां जानें पूरा गणित
Rupee Exchange Rate रुपये की मजबूती और कमजोरी की क्या वजह है। साथ ही सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..
नई दिल्ली, टेक डेस्क। भारतीय रुपया सोमवार को अपने सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया था। जब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 78 रुपये हो गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय रुपया की मजबूती और कमजोरी कौन तय करता है। साथ ही इसे तय करने का फॉर्मूला क्या है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से..
क्या होता है एक्सचेंज रेट
जिस मूल्य (दर) पर एक देश की मुद्रा दूसरे देश की मुद्रा से बदली जाती है उसे ‘एक्सचेंज रेट’ कहते हैं। किसी भी देश की करेंसी का मूल्य बाजार में उसकी मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। जैसे एक सामान्य व्यापारी सामान की खरीद-फरोख्त करता है, वैसे ही फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय होता है। एक्सचेंज रेट दो प्रकार के हो सकते हैं- स्पॉट रेट यानी आज के दिन विदेशी मुद्रा का मूल्य और फॉरवर्ड रेट यानी भविष्य में किसी तारीख के लिए एक्सचेंज रेट।
डॉलर इंडेक्स का मतलब क्या है?
डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।
डॉलर इंडेक्स से अमेरिकी डॉलर की मजबूती का संकेत मिलता है। डॉलर इंडेक्स जितना चढ़ता है अमेरिकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है। वहीं डॉलर इंडेक्स के फिसलने से यह माना जाता है कि अमेरिकी मुद्रा कमजोर हो रही है।
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डॉलर इंडेक्स में अन्य मुद्राओं का वेटेज
डॉलर इंडेक्स पर हर मुद्रा के विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का अलग प्रभाव पड़ता है। इस मामले में सर्वाधिक वेटेज यूरो को दिया जाता है जबकि स्विस फ्रैंक का न्यूनतम वेटेज होता है।
डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर
1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया गया है जब यूरोप डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।
पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।
US Dollar Index Explained (USDX / DXY)
Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रुपये में लगातार गिरावट के पीछे क्या वजह बताई
- News18Hindi
- Last Updated : October 16, 2022, 15:23 IST
हाइलाइट्स
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक भारतीय रुपये की कीमत 82.69 पर पहुंच गई है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है.
वित्त मंत्री ने कहा रुपये ने कई अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी से बेहतर किया है.
नई दिल्ली. बढ़ती महंगाई और बाजार में जारी अस्थिरता के बीच मंदी की आहट से लोग चिंतित हैं. इसी बीच डॉलर के मुकाबले रुपये में लगातार गिरावट जारी है. रुपया गिरकर प्रति डॉलर 82.69 रुपये के भाव पर पहुंच गया है. यानी आपको एक डॉलर के लिए 82.69 रुपये खर्च करने होंगे. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, डॉलर के मुकाबले रुपए में जारी कमजोरी आर्थिक विकास दर और हमारे अर्थव्यवस्था के लिहाज से ठीक नहीं है. लेकिन अमेरिकी दौरे के दौरान एक प्रेस ब्रीफिंग में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस संबंध में कुछ अलग ही जवाब दिया.
एक्सचेंज रेट और इकनॉमी में गहरा नाता
2013 में उन्होंने जो ट्वीट किए थे, आपको सिर्फ उसको देखना चाहिए जो आज के संदर्भ में भी काफी हद तक सही हैं. लेकिन अगर आप एक एक्सपोर्टर हैं, तो चीजें साफ साफ दिख सकती हैं क्योंकि बिल आप अमेरिकी डॉलर में भर रहे हैं. उदाहरण के लिए सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट जो वॉल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली के क्लाइंट को सेवाएं दे रहा है उसके बिल से भी सब समझ में आ जाएगा.
वास्तव में, आप तर्क दे सकते हैं कि एक हेल्दी एक्सचेंज रेट पॉलिसी ऐसी है कि यह एक्सपोर्टर्स का जोश कम नहीं करती है क्योंकि लंबे समय में, एक अर्थव्यवस्था की वैश्विक ताकत इस बात से निर्धारित होती है कि वह कितना एक्सपोर्ट कर सकती है और, विशेष रूप से नेशनल इनकम (GDP) में इसका क्या हिस्सा रहता है. कितना कम वो इंपोर्ट करते हैं ताकि व्यापार घाटा और इसके भी ज्यादा, चालू खाता घाटा यानी CAD (जिसमें रेमिटेंस और पर्यटन आय भी शामिल है) व्यापक रूप से बढ़ ना जाए.
रुपए में उठापटक की वजह क्या?
चालू वित्तीय साल 2022-23 की अप्रैल-जून तिमाही में भारत का करेंट अकांउट डेफिसिट 23.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 2.8%) दर्ज किया गया जो जनवरी-मार्च तिमाही में 13.4 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 1.5%) से ज्यादा) है. एक साल पहले के नंबर से यह 6.6 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 0.9%) ज्यादा है.
आप पहली तिमाही में जो CAD है उसका ठीकरा यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए तनाव पर फोड़ सकते हैं और फिर एक साल पहले के सरप्लस घाटा को कोविड -19 महामारी से जुड़ी कम आर्थिक गतिविधियों का नतीजा बता सकते हैं लेकिन एक सामान्य तथ्य यहां पर यह है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में भी ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं. कमजोर भारतीय रुपये के कारण पहली तिमाही जितना व्यापक घाटा भले ही ना हो लेकिन घाटा बढ़ा ही है.
फिर भी इस बात को दिमाग में रखना महत्वपूर्ण है कि हेल्दी फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी ऐसा कुछ नहीं है कि लंबी अवधि में यह प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रभावित करती है. आप सिर्फ चीन पर नजर डालें, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ लगातार संघर्ष में रहता है और चीनी सरकार अपनी करेंसी ‘रेनमिनीबी’ को कमजोर बनाए रखती है.
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इसके उलट यदि कोई मुद्रा डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही है, तो उसका आयात सस्ता होगा और निर्यात महंगा होगा। जाहिर है कि भुगतान संतुलन के मामले में इसके कारण मजबूत मुद्रा वाला देश हमेशा नुकसान में रहेगा।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि किसी वस्तु का मूल्य भारत में 80 रुपये है तो अमेरिकी बाजार में वह 1 डॉलर का होगा, लेकिन यदि डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है होकर 40 रुपये का हो जाए, तो वही वस्तु अमेरिकी बाजार में 2 डॉलर की डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है हो जाएगी। यह आंकड़ा सिर्फ प्रतीकात्मक और समझाने के लिए है क्योंकि देसी मूल्य में एक्सपोर्ट होने पर ट्रांसपोर्ट, टैक्स इत्यादि कई लागत जुड़ती जाएंगी। लेकिन अनुपात तो इसी तरह रहेगा।
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